धर्म

स्वामी राजदास : मृत्यु का भय

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मृत्यु से भय का कारण है- ‘अविद्या’। सवाल उठता है, कि इस अविद्या को कैसे दूर करें? बताइये, आप शरीर हैं या आत्मा? आत्मा। क्या आत्मा का जन्म होता है? नहीं। आत्मा का जन्म नहीं होता। क्या आत्मा मरती है? नहीं मरती। आत्मा का जन्म भी नहीं होता और आत्मा मरती भी नहीं, तो फिर मरने से डरना क्यों? मृत्यु से डर तो इसलिये लगता है, कि हम शरीर को आत्मा समझने की भूल करते हैं, यह गड़बड़ है। यह सबकी समस्या है। सब लोग शरीर को आत्मा मानते हैं, यही अविद्या है। इस अविद्या को दूर करें। ‘शरीर’ अलग है, ‘आत्मा’ अलग है। शरीर का जन्म होता है, शरीर की मृत्यु होती है। आत्मा का जन्म नहीं होता, आत्मा की मृत्यु नहीं होती है। और हम शरीर नहीं हैं, हम तो हैं आत्मा। तो फिर मरने से क्या डरना? मौत आएगी, तो आएगी। हम आत्मा हैं, शरीर हमारी गाड़ी है, आत्मा इस शरीर में बैठा है। आत्मा शरीर में बैठने से, वो दो चीज नहीं हो जाता। जैसे आप कार में बैठ गए तो क्या आप दो चीज बन गए? आप कार में बैठ गए तो केवल इतना ही तो है, कि आप कार में बैठे हैं। बैठ गए, फिर उतर जायेंगे, अलग हो जायेंगे। ऐसे ही ‘आत्मा’ शरीर में बैठा है, फिर छोड़कर अलग हो जाएगा। इतनी सी बात है। कार में बैठने से व्यक्ति कार नहीं बनता, यथावत् दोनों का संयुक्त स्वरूप नहीं हो जाता। ऐसे ही आत्मा के शरीर में बैठने से शरीर और आत्मा दोनों का मिश्रित (मिक्स( स्वरूप नहीं हो जाता है। हम शरीर को आत्मा मानते हैं अथवा दोनों को मिलाकर एक चीज मानते हैं, यही तो अविद्या है। इसी अविद्या के कारण मृत्यु से डर लगता है।
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