धर्म

परमहंस स्वामी सदानंद जी महाराज के प्रवचनों से—82

लक्ष्मी को पाकर उसका सदुपयोग करना सबके वश की बात नहीं है। माया के साथ अनेक प्रकार की बुराईयाँ इन्सान में पनप जाती है। ऐश्वर्य,सम्पति को पाकर आदमी कुसंगत में गिर जाता है जिसके दुष्परिणाम से जुआ खेलना,शराब पीना ,धुम्रपान आदि बुरी आदतों का शिकार हो जाता है। अत: सम्पत्ति का सदुपयोग करो,अनाथ की सहायता करना,गरीब के बच्चों को पढ़ाना,उनको वस्त्रादि देना,मन्दिर बनवाना,धर्मशालाएँ बनवाना आदि सामाजिक कार्यो में लगाने से उसका सदुपयोग होता है और बुराईयों से बचा जा सकता है। अधिक सम्पत्ति भी अच्छी नहीं है। हितकारी होने की जगह विनाशकारी साबित होती है।

इसीलिए कबीरदास जी ने कहा है- हे मेरे दाता मुझे इतनी ही सम्पत्ति देना,जिससे कुटुम्ब -परिवार दो समय भोजन कर सके और यदि कोई सन्त घर आ जाये तो उनका आदर सत्कार भोजन पानी आदि की व्यवस्था में कोई कमी न रहें। अधिक सम्पत्ति कई बार मानव को शैतान बना देती है। माया के अभिमान में डूबा हुआ मनुष्य कू्ररता भरे कार्य करने लग जाता है। इसीलिए प्रेमी सज्जनों लक्ष्मी का दुरूपयोग कभी मत करना। कभी जब खाली बैठे हो तो लक्ष्मी की तस्वीर को ध्यान से देखना,उससे बहुत बहुत शिक्षा मिलती है।

लक्ष्मीजी के चार हाथ होते है। लक्ष्मी जी के एक हाथ में कमल का फूल हैं। उससे हमें शिक्षा देती हुई वह कहती है कि हे मानव,जैसे कमल कीचड़ में पैदा होता है परन्तु कमल हमेशा कीचड़ से दूर रहता है और अपनी खुशबू से सारे संसार को सुवासित करता है। इसी प्रकार मेरा उत्पत्ति-स्थान समुद्र है,यदि मैं तुम्हारे घर में आऊं ,तुम धनाढ्य बन जाओ तो मेरा उपयोग भी सद्कार्यो में करना ताकि तुम्हारा यश दुनियाँ मैं फैले,तुम्हारी कीर्ति-पताका हमेशा हमेशा के लिए विश्व को तुम्हारी याद दिलाती रहे।

लक्ष्मीजी अपने एक हाथ से सबको आशीर्वाद देती है तथा शिक्षा देती है कि हे मानव यदि तुम्हारे पास मैं आ जांऊ तो तुम मेरी तरह सबके प्रति दया-भाव रखना। आपके पास काम करनेवाले जितने कर्मचारी है उनको बड़े प्यार से रखना तथा उनकी आवश्यकताओं को पूर्ण करना। उनको जो मासिक वेतन देते हैं, वह तो देना ही,क्योंकि वह तो उसकी मजदूरी का हक है,इसके अतिरिक्त जब कोई त्यौहार आए,जैसे दीपावली,दशहरा,होली,विवाह आदि तो उनके बच्चों के लिए मिठाईयाँ,कपड़े और रूपये आदि देकर उनके उत्साह को बढ़ाइये, ताकि वे सब अपने मालिक के सब कार्य वफादारी से करते रहे।

यदि आप उनका ध्यान नहीं रखेंगे,तो वे भी अनेक प्रकार की बुराईयाँ करने लग जायेंगे। काम करने से जी चुराने लग जायेंगे, हेरा-फेरी करने लगेंगे। इसलिए उनको नौकर नहीं,बल्कि सहायक के रूप में मानो तभी आपका व्यापार,फैक्ट्री आदि सुचारू ढग़ से चल पायेंगी।

लक्ष्मीजी का तीसरा हाथ कुछ देते हुए का है,इससे यह शिक्षा मिलती है,हमेशा, अपने हाथों से दान करते रहो। लक्ष्मी चंचला है,चपला है,यह हमेशा किसी के यहाँ नहीं रहती। इसका कोई विश्वास नहीं,कब चली जाये। कहते हैं जब लक्ष्मी आती है तो छाती पर लात मारकर आती है जिसके परिणाम स्वरूप मानव का मुंह ऊपर हो जाता है अर्थात् घंमडी बन जाता है अपने से नीचे वालों को उसे देखने की फुरसत नहीं होती और जब यह जाती है तो कमर पर लात कर जाती है,जिससे इन्सान नीचे की और देखने लगता है ,समाज में उसकी कोई इज्जत नहीं रहती।

आज के कलिकाल में माया को ही सब कुछ मान लिया गया है। माया सब दुर्गुणों पर अपना,चमकीला आंचल फैला देती है,यही कारण है कि आज बड़े से बड़ा अपराधी भी माया के बल पर बाइज्जत बरी होकर समाज में सिर उठाकर जी रहा है।

चरित्र को माया से तौल दिया गया है। यदि कोई व्यक्ति धनाढ्य है,तो उसके दुगुर्णो की तरफ अंगुली उठानेवाला कोई नहीं मिलेगा। उसकी बुराईयाँ भी अच्छाईयाँ बन जायेंगी और निर्धन यदि चरित्रवान है, तो महान समाज उसको शक की निगाहों से देखेगा। इसीलिए इस मायाप्रधान युग में लक्ष्मी का सदुपयोग करके अपने जीवन में पुण्य कार्य करते रहो ताकि तुम्हारे जाने के बाद भी तुम्हारी यादें अमर बन जायें।

लक्ष्मीजी के चौथे हाथ में कलश है,उसके ऊपर हमेशा नारियल रहता है जो हमें शिक्षा देता है कि समय समय पर मांगलिक कार्यो का आयोजन करवाते रहो,ताकि तुम्हारा अपना तो इह लोक और परलोक सुधरेगा ही, दूसरे भी इससे लाभाविन्त होंगे और प्रेरित होकर सतकार्य करते रहेंगे। अपने ऊंचे लोगों से मिलकर प्रसन्नता होती है,यदि हमारी दी गई कोई वस्तु वे स्वीकार कर लेते हैं,तो मन में हम उनका अहसान भी मानते हैं,लेकिन अपने से नीचे व्यक्तियों से मिलने पर प्रसन्नता नहीं होती और यदि हम उनको कुछ देते हैं तो मन में आता है कि हमने उनको देकर बड़ा भारी अहसान कर किया है। यह भावना क्यो?

क्योंकि जीव को माया के पलड़े में तोलते हैं,जो नहीं तोलना चाहिये। जीव मात्र सब एक है, जब तक यह धारणा नहीं बनेगी तब तक यह भेद रेखा बनी रहेगी।

प्रत्येक जीव परब्रह्म परमात्मा अंश है। घट-घट में उसका निवास है। जो कुछ भी है वह सब उसका है। न कुछ लेकर इन्सान पैदा होता है और न ही कुछ साथ लेकर जायेगा। खाली हाथ आया है और खाली हाथ जायेगा। इसीलिए यदि परमात्मा की कृपा से लक्ष्मी तुम्हारे हाथ में हैं उसका सदुपयोग करो।

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