धर्म

ओशो : परमात्मा मौलिक है

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इस दुनिया में सत्य की एक अभिव्यक्ति बस एक ही बार होती हैं,दुबारा नहीं होती। वैसी अभिव्यक्ति फिर कभी नहीं होती। नानक जिस ढंग से बोले,बस नानक बोले। अगर कोई व्यक्ति बिल्कुल नानक के ढंग से बोलता हो-बिल्कुल वैसा का वैसा- तो समझ लेना कि झूठ है। अगर स्वानुभव से बोलेगा तो फर्क पड़ ही जायेंगे क्योंकि परमात्मा दो व्यक्ति एक जैसे बनाता ही नहीं,परमात्मा की आदत नहीं। पार्ट टाइम नौकरी की तलाश है..तो यहां क्लिक करे।
परमात्मा मौलिक है। अपने को दोहराता नहीं। कृष्ण को एक बार बनाया। अब अगर तुमको बाजार में कोई मोर-मुकुट और बांसुरी रखे हुए और पीताम्बर पहने हुए कृष्ण खड़े मिल जायें, तो समझ लेना कोई अभिनेता है, रास लीला कर रहा है। कृष्ण फिर दुबारा नहीं हुए। बुद्ध दुबारा नहीं हुए।
दुबारा यहां कुछ होता ही नहीं। जैसी सुबह आज हुई हैं,फिर कभी न होगी। जो इस क्षण हो रहा है फिर दोबारा नहीं होगा। प्रत्येक क्षण अद्वितीय है,बेजोड़ है। और प्रत्येक तो स्वभावत: बेजोड़ हैं। वैसी तरंग फिर कभी नहीं आती। जीवन आधार प्रतियोगिता में भाग ले और जीते नकद उपहार
इसलिए इसको मापदण्ड समझो: अगर तुम्हें कोई व्यक्ति किसी दूसरे को रत्ती -रत्ती दोहराता मिल जाये, तो समझ लेना नकली है। और यह भी हो सकता है कि दोहराने वाला बड़ी कुशलता से दोहराए। दोहराने वाला बहुत कुशल हो सकता है, उसकी भाव-भंगिमाएं बिल्कुल परिपूर्ण हो सकती हैं। कभी-कभी तो ऐसा हो जाता हैं कि असली से ज्यादा परिपूर्ण मालूम हो सकती हैं नकली की भाव-भंगिमाएं। क्योंकि असली ने उनका अभ्यास नहीं किया है,नकली ने उनका अभ्यास किया हैं।

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