50-60 वर्ष पहले आसाम को काला पानी कहते थे। राजस्थान में अकाल पड़ा और एक बनिये ने सोचा, व्यापार के लिए बाहर चलना चाहिए। उस समय जाने आने के साधन इतने आसान नहीं थे। जैसे-तैसे करके आसाम पहुंचा। भाग्य ने साथ दिया,व्यापार अच्छा चला, दो तीन वर्षो में ही धनाढ्य हो गया। उस समय चांदी के रूपये होते थे या सोने की अशर्फियां होती थीं। आजकल की तरह बैंक ड्राफ्ट या चैक आदि का इतना चलन नहीं था। तो उसने उस धनराशि को एक कपड़े की थैली में डालकर अपने कमर से बांध ली और अपने गांव की ओर प्रस्थान कर दिया। रास्ते में कुछ रास्ता पैदल चलने का था। रास्तें में एक रीछ सामने आता दिखाई दिया बेचारा घबराया क्या करूं? उसने सुन रखा था कि यदि रीछ के कान पकड़ लिये जाए तो वह काबू हो जाता है। उसने उस रीछ के कान पकड़ लिये।
सेठजी भी रीछ के साथ कुदता है, नाचता है,क्योंकि रीछ कान छुड़वाना चाहता है, परन्तु सेठ ने पुरे जोर से कान पकड़ रखे हैं, उन दोनों की उछल कूद में जो सेठ की कमर में रूपये और अशर्फियों से भरी थैली थी, वह खुल गई और रूपये इधर-उधर बिखर गए। सेठजी पेरशान हो गए क्या किया जाए? इतने में ही उसे रास्ते से एक यात्री आता दिखाई दिया, सेठ को कुछ राहत मिली। पास आया। सेठ बड़ा होशियार था उसने कहा, भैया मैं तो इसके कान पकड़े पकड़े थक गया हूं और मुझे धन भी मिल गया है , यदि तुम मेरी तरह धनवान् बनना चाहते हो ,तो लो इस रीछ के कान पकड़ लो, ज्यों-ज्यों यह उछलेगा इसके मुख से ऐसे ही रूपये और अशर्फियां निकलेगी। धन किसको नहीं चाहिए? उसने फौरन रीछ के कान पकड़ लिए। सेठ जी ने अपना पैसा बटोरा और सुख की सांस ली, कुशल से अपने घर पहुंच गया। वह बेचारा गरीब धन के लोलुपता के कारण मुसीबत में फंस गया।
प्रेमी सज्जनों! यह गृहस्थाश्रम भी रीछ के कान पकडऩे के समान है, यदि बेटा बड़ा हो गया है तो यह कान उसके हाथ में पकड़ा दो और बहू घर में आ गई है तो घर की चाबी उसको सम्भाल दो और स्वयं सत्संग , सेवा सुमिरन में लग जाओ। काम कभी समाप्त नहीं होंगे, हम खुद समाप्त हो जायेंगे।