धर्म

सत्यार्थप्रकाश के अंश—22

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शत्रु के तलाब,नगर के प्रकोट और खाई को तोड़ फोड़ दे,रात्रि में उन को भय देवे और जीतने का उपाय करे।
जीत कर उन के साथ प्रमाण अर्थात् प्रतिज्ञादि लिखा लेवे और जो उचित समय समझे तो उसी के वंशस्थ किसी धार्मिक पुरूष को राजा कर दे औश्र उस से लिखा लेवे कि तुम हमारी आज्ञा के अनुकूल अर्थात जैसी धर्मयुक्त राजनीति है उस के अनुसार चल के न्याय से प्रजा का पालन करना होगा ऐसे उपदेश करे और ऐसे पुरूष उनके पास रखे कि जिससे पुन: उपद्रव न हो और जो हार जाय उसका सत्कार प्रधान पुरूषों के साथ मिलकर रत्नादि उत्तम पदार्थो के दान से करे और ऐसा न करे कि जिस से उस का योगक्षेम भी न हो, जो उस को बन्दीगृह करे तो उस का सत्कार यथायोग्य रखे जिस से वह हारने के शोक से रहित होकर आनन्द में रहे।
क्योंकि संसार में दूसरे का पदार्थ ग्रहण करना अप्रीति और देना प्रीति का कारण है और विशेष करके समय पर उचित क्रिया करना और उस पराजित के मनोवाञ्छित पदार्थो का देना बहुत उत्तम है और कभी उस को चिड़ावे नहीं,न हंसी और ठट्ठा करें,न उस के सामने हमने तुझ को पराजित किया हैं ऐसा भी कहैं,किन्तु आप हमारे भाई है इत्यादि मान्य प्रतिष्ठा सदा करे।
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