एक नौजवान किसी महात्मा की कथा सुनने हर रोजा जाता था,किन्तु दस मिनिट में ही कथा के बीच में उठकर चला जाता था,ऐसा देख महात्मा ने एक दिन पूछ ही लिया, बेटे प्रवचन पूरा सुना करो, बीच में ही क्यो चले जाते हो?
युवक ने बड़े विनम्र शब्दों में हाथ जोडक़र कहा,महाराज,मैं अपने माँ-बाप का एकमात्र पुत्र हूँ। यदि मुझे पांच मिनट भी देर हो जाती हैं तो मेरे माँ-बाप मेरी खोज में घर से निकल पड़ते है और मेरी नवविवाहिता पत्नी तो मेरे ऊपर प्राण न्योछावर करती है और बेचारी व्याकुल होकर छटपटाने लगती है। महाराज जी आप क्या जानें, इन सम्बंधों को,क्योंकि आपको कोई अनुभव तो है नहीं।
महाराज युवक की बात पर मुस्कुराए और बोले बेटा,तुम ठीक कहते हो,फिर भी हम क्यों न उनके प्रेम की परीक्षा लेकर देंखे? मैं तुम्हें यह जड़ी बूटी देता हूं,घर जाकर सोने से पहले इसे पानी से ले लेना। इसके प्रभाव से तुम्हारा शरीर तपने लग जायेगा। उसके बाद का नजारा अपनी आँखों से प्रत्यक्ष देखना,तब तुम्हें मालूम होगा कि सांसारिक संबंध सब स्वार्थमय है।
उस युवक ने महात्मा की आज्ञानुसार सब कार्य किया। प्रात:काल जब देर तक पतिदेव सोकर नहीं उठे,तो पत्नी ने कहा हे साजन! उठो सुबह के आठ बज गए हैं। कोई उत्तर न पाकर जब हाथ लगाकर देखा शरीर तो आग की तरह जल रहा है। घबराकर सास-ससुर के पास आई और सब कुछ बताया,तो माता-पिता भी बैचैन हो उठे। तत्काल डाक्टरों और वैद्यों को बुलाया ,किन्तु कोई भी उपचार नहीं हुआ, कोई भी दवा माफिक नहीं आई। सभी बेचैन होकर उदासी के आँचल में अपने आँसू बहाये जा रहे थे। न खाना,न पीना।
इतने में सायंकाल हो गया,महात्मा आ पहुँचे। सभी ने हाथ जोडक़र प्रार्थना कि महाराज जी पता नहीं किसी ने क्या जादू-टोना किया है,बुखार में मेरा लाडला जल रहा है,कोई दवा नहीं लग रही है,कृपया आप इसका कोई इलाज कीजिए। महाराजजी ने कहा, जाओ एक कटोरी में शुद्ध गंगाजल लेकर आओ,अभी मैं इसका उपचार किए देता हूं घबराने की कोई बात नहीं हैं। पानी उस युवक के मस्तक पर से सात बार घुमाया और कहा,यदि तुम इस युवक को बचाना चाहते हो तो पानी तुम तीनों में से किसी एक को पीना होगा।
तीनों ने एक स्वर में पूछा ,महाराजी पीने वाले पर इस पानी का क्या प्रभाव होगा। महात्माजी बोले इस पानी को पीने वाले की शायद मौत भी हो सकती है,परन्तु युवक के प्राण अवश्य बच जायेंगे।
सर्वप्रथम महात्माजी ने वह पानी से भरी कटोरी उसकी माता के सामने की तो माता ने कहा, महाराजी मैं अपने पुत्र को बचाने हेतु यह पानी पी तो सकती हूं,परन्तु मैं पतिव्रता हूं,मेरे मरने के बाद मेरे पति की सेवा कौन करेगा?
पिता ने कहा, महाराज जी यही सोचकर मैं भी यह पानी नहीं पी सकता कि मेरे मरने के बाद मेरी पत्नी की क्या दशा होगी? और यह तो मेरे बिना जी भी नहीं सकती। महात्मा ने हँसते हुए व्यंग्यात्मक स्वर में कहा,,तुम दोनों आधा-आधा पी लो, दोनों के सभी क्रिया कर्म एक साथ निपट जायेंगे।
नाकारात्मक उत्तर पाकर महाराजजी ने वह पानी की कटारी पत्नी की ओर करते हुए कहा,बेटी यह पानी तुम पी जाओ,तुम तो अर्धांगिनी हो,माता-पिता से भी ज्यादा तुम्हें अपने पति से प्यार है लो।
पत्नी ने कहा महारजजी मैं तो अभी 6मास से ही इस घर में आई हूँ मै ने तो सांसारिक सुख भोगे तक नहीं हैं,मैं कैसे अपनी जीवनलीला समाप्त कर सकती हूं?
इस प्रकार सभी ने,जो कहते थे कि तुम्हारे लिए हमारी जान भी हाजिर है। पानी पीने से इनकार कर दिया और ऊपर से महात्माजी से कहने लगे महाराजजी आप ही इस पानी को पीने की कृपा करे क्योंकि आपके पीछे कोई रोने वाला नहीं है और आप हमेशा परोपकार करने का उपदेश भी दिया करते हो, तो इससे बढक़र और परोपकार क्या हो सकता है? हम आपका श्राद्ध ब्रह्मणभोज हर साल कर दिया करेंगे।
महसत्मा जी हँसे और एक घूट में वह पानी पी गए। युवक को सभी प्रेम का अनुभव हो गया था,उठा और महात्मा जी के चरणों में पडक़र विनती की हे महाराज! आपने मेरी ज्ञान की आंखे खोल दी हैं, मैं संसार की स्वार्थपरता को अच्छी तरह जान चुका हूं,अब आप मुझ को अपनी शरण में लेकर अपने चरणकमलों की भक्ति दें और परमात्मा से वास्तविक सम्बन्ध जोडऩे वाली राह दिखाएँ तथा मेरी जीवननैया को भवसागर से पार उतारें।
इससे हमें शिक्षा मिलती है कि सदगुरू ही मुक्तिप्रदाता होते हैं, जीवन की नश्वरमता का बोध मानव को करा कर वैराग्य भाव की उत्पत्ति कराते हैं और भक्ति-मार्ग पर चलाते हैं तथा अजर अमर,अविनाशी श्रीकृष्ण से प्रेम का बन्धन जोड़ देते हैं, आवागमन के चक्र से छुड़ा देते हैं।