समय कभी रूकता नहीं, चाहे अच्छा समय हो या बूरा, चाहे दु:ख की घडिय़ाँ हों या सुख की। दु:ख के समय लगता है कि समय रूक गया है अर्थात् घडिय़ाँ लम्बी लगती हैं और सुख के समय लगता हैं, समय भाग रहा है, ऐसा होता नहीं है।
प्रिय सज्जनों दु:ख किसके जीवन काल में नहीं आया? श्रीराम को राजनीतिलक होना था लेकिन भविष्यता के वश वनवास में जाना पड़ा, भरी सभा में द्रौपदी को नग्र करने की कुचेष्ठा की गई, माता सीता को नंगे पाँव कांटो पर चलना पड़ा।
इतना महानात्माओं को भी दु:खों नहीं छोड़ा, तो मेरे दु:ख उसके दु:खों के सामने कुछ भी नहीं। इस प्रकार संकट के समय घबराओं नहीं, धैर्य रखो और भक्ति करो। जितना नाम-संकीर्तन होगा उतना ही शीघ्रता से दु:ख के काले बादल भाग जायेंगे और आन्नद की अनुभुति होगी।