दिनभर काम करके हर प्राणी थक जाता है उस थकान को दूर करने के लिए मनुष्य रात को सो जाता है,पशु भी सोते हैं, पक्षी भी सोते हैं,जीव जन्तु भी सोते हैं,कीट पंतग भी सोते हैं और सोने के बाद सब बराबर हैं चाहे एक मजदूर सडक़ पर सो रहा है या कोई अमीर आदमी एयरकंडीशंड कमरे में सो रहा है।
यदि दिल बैचैन हो तो कितने ही आरामदायक साधन क्यों न हों नींद नहीं आती। सारी रात करवटें बदलते रहने मेें कट जाती है। सडक़ पर सोने वाले मजदूर को,जिसके नीचे केवल धरी ऊपर आसमान होता है पता भी नहीं चलता कि प्रातकाल हो जाता है। इस प्रकार सोना और ऊठना यह सब पशु और मानव में समानता दर्शाता है।
फिर मानव को पशु—पक्षी से अलग कौन करता है?? मानव को पशु और पक्षियों से अलग करती है उसकी बुद्धि। मानव ने बुद्धि के बल पर तरक्की की। स्वयं का एक अलग समाज बनाया। लेकिन इस समाज में उसने अपने मूल के स्थान पर वासना, लोभ और माया को अधिक स्थान दिया। यहीं उसके पीढ़ा का कारण बन गया है।
मानव को यदि प्रसन्न रहना है, तो उसे अपने मूल से जुड़ना होगा। अपने प्रभू को हरपल याद करना होगा। उसके सुझाए मार्ग पर चलना होगा। यदि वो इसके विपरीत आचरण करता है तो उसे दुख, कष्ठ और संताप भुगतने पड़ेगे।