हिसार
मंगलवार को नीजि अस्पतालों मेंं हड़ताल के चलते मरीजों को काफी परेशानी का सामना करना पड़ा। डाक्टर को आमतौर पर मरीज के लिए भगवान का दर्जा दिया जाता है, लेकिन उनकी हड़ताल ने साफ कर दिया कि वे दर्जे का कोई सम्मान नहीं करते। इसमें कोई दो राय नहीं है कि देश में नीजि अस्पतालों की फीस को लेकर कोई नियम नहीं बना हुआ है। ये अपनी मनमर्जी से मरीजों से पैसे वसूलते है। देशभर से समय—समय पर पैसे के अभाव में मरीजों की डेडबॉडी तक अभिभावकों को देने में आनाकानी करने के मामले भी समाने आते रहते है। फिर भी भारत देश में डाक्टर वर्ग को एक विशेष सम्मान प्राप्त है। डाक्टरों ने बड़ी संख्या में आवसीय क्षेत्रों में अस्पताल खोल रखे है। इससे उस क्षेत्र के निवासियों को होने वाली समस्या को नजर अंदाज कर हड़ताली डाक्टर ऐसे अस्पताल की एनओसी मांग रहे है। किसी से ये बात नहीं छीपी की नीजि अस्पतालों में बनी मेडिकल में दवओं के मूल्य बाजार की तुलना में ज्यादा होते है। अस्पताल में बनी कैंटिन में खाने—पिने के समान के भी अपने रेट होते है। अस्पतालों के छोटे से कमरों के रेट होटलों के रुम से ज्यादा वसूले जाते हैं। हड़ताली डाक्टरों को इस पर भी कुछ ध्यान देना चाहिए। जब वो अपनी मांग मनवाने के लिए हड़ताल कर सकते है तो मानवता के नाते फीस, रुम किराया, कैंटिन रेट, अस्पताल की मेडिकल पर दवाईयों के रेट को लेकर भी स्वयं एक पोलसी भी बना सकते है। सर्ववदित है कि एक ही टेस्ट को लेकर अलग—अलग अस्पतालों में भिन्न—भिन्न रेट होते है, इसको लेकर भी हड़ताली डाक्टरों को कुछ सोचना चाहिए। हो सकता है कि हड़ताली डाक्टरों की मांग सही हो, लेकिन सरकार से आशा करने से पहले उन्हें अपनी कार्यप्रणाली पर भी ध्यान देना चाहिए।
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