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जो-जो बुद्धि का नाश करने वाले पदार्थ है उन का सेवन कभी न करें और जितने अन्न सड़े,बिगड़े दुर्गन्धादि से दुषित,अच्छे प्रकार न बने हुए और मद्य,मांसाहारी म्लेच्छ कि जिन का शरीर मद्य,मांस के परमाणुओं ही से पुरित है उनके हाथ का न खावेें।
जिस में उपकारक प्राणियों की हिंसा अर्थात् जैसे एक गाय के शरीर से दूध,घी, बैल, गाय उत्पन्न होने से एक पीढ़ी में चार लाख पचहत्तर सहस्त्र छ: सौ मनूष्यों को सुख पहुंचाता है वैसे पशुओं को न मारे, न मारने दें। जैसे किसी गाय से बीस सेर और किसी से दो सेर दुध प्रतिदिन होवे उस का माध्यम ग्यारह सेर प्रत्येक गाय से दूध होता है। कोई अठारह और कोई छ: महीने दुध देती है,उस का भी मध्य भाग बारह महीने हुए। अब प्रत्येक गाय के जन्म भर के दूध से चौबीस सहस्त्र नौ सौ साठ मनुष्य एक बार तृप्त हो सकते हैं। उसके छ: बछियां छ:बछड़े होते हैं। उन में से दो मर जाये तो भी दस रहे।
उनमें से पांच बछडिय़ों के जन्म भर के दूध को लिा कर एक लाख चौबीस सहस्त्र आठ सौ मनुष्य तृप्त हो सकते हैं। अब रहे पांच बैल,वे जन्म भर में पांच सहस्त्र मन अन्न न्यून से न्यून उत्पन्न कर सकते हैं। उस अन्न से प्रत्येक मनुष्य तीन पाव खावे तो अढ़ाई लाख मनुष्यों की तृप्ति होती है। दुख और अन्न मिला कर तीन लाख चौहत्तर हजार आठ सौ मनुष्य तृप्त हो सकते हैं। दोनों संख्या मिलाकर एक गाय की पीढ़ी में चार लाख पचहत्तर सहस्त्र छ: सौ मनुष्य एक वार पालित होते हैं और पीढ़ी परपीढ़ी बढ़ा कर लेखा करें तो अंसख्यात मनुष्यों का पालन होता है और इस से भिन्न बैलगाड़ी बढ़ा कर लेखा करें तो असंख्यात मनुष्यों का पालन होते हैं तथा गाय दूध में अधिक उपकारक होती हैं परन्तु जैसे बैल बैल उपकारक होते हैं वैसे भैंसे भी है। परन्तु गाय के दूध घी से जितने बुद्धिवृद्धि से लाभ होते हैं उतने भैंस के दुध से नहीं। इससे मुख्योपकारक आर्यो ने गाय को गिना है। और जो कोई अन्य विद्वान् होगा वह भी इसी प्रकार समझेगा। बकरी के दुध से पच्चीस सहस्त्र नौ सौ बीस आदमियों का पालन होता है वैसे हाथी, घोड़े,ऊंट,भेड़,गदहे आदि से भी बड़े उपकार होते हैं। इन पशुओं को मारने वालों का सब मनुष्यों की हत्या करने वाले जानियेगा।
देखो जब आर्याे का राज्य था तब ये महोपकारक गाय आदि पशु नहीं मारे जाते थे,तभी आय्र्यावत्र्त वा अन्य भूगोल देशों में बड़े आनन्द में मनुष्यादि प्राणी वत्र्तते थे। क्योंकि दूध, घी,बैल, आदि पशुओं की बहुताई होने से अन्न रस पुष्कल प्राप्त होते थे। जब विदेशी मांसाहारी इस देश में आके गो आदि पशुओं के मारने वाले मद्यपानी राज्यधिकारी हुए हैं तब से क्रमश: आर्यो के दु:ख की बढ़ती होती जाती है।
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