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सत्यार्थप्रकाश के अंश—34

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सृष्टि से ले के पांच सहस्त्र वर्षो से पूर्व समय पर्यन्त आर्यो का सार्वभौम चक्रवती अर्थात् भूगोल में सर्वोपरि एकमात्र राज्य था। अन्य देशों में माण्डलिक अर्थात् छोटे-छोटे राजा रहते थे क्योंकि कौरव पाण्डव पर्यन्त यहां के राज्य और राजशासन में सब भूगोल के सब राजा और प्रजा चले थे क्योंकि यह मनुस्मृति जो सृष्टि की आदि में हुई है उस का प्रमाण है। इसी आय्र्यावत्र्त देश में उत्पन्न हुए ब्राह्मण अर्थात् विद्वानों से भूगोल के मनुष्य ब्राह्मण,क्षत्रिय, वैश्य,शूद्र ,दस्यु म्लेच्छ आदि सब अपने-अपने योग्य विद्या चरित्रों की शिक्षा और विद्याभ्यास करें। और महाराजा युधिष्ठिर जी के राजसूय यज्ञ और महाभारत युद्धपर्यन्त यहां के राज्याधीन सब राज्य थे।
सुनों चीन का भगदत्त, अमेरिका का बब्रुवाहन,यूरोपदेश का विडालाक्ष अर्थात् मर्जार के सदृश आंखवाले यवन जिस का यूनान कह आये और ईरान का शल्य आदि सब राजा राजसूय यज्ञ और महाभारत युद्ध में सब आज्ञानुसार आये थे। जब रघुगण राजा थे तब रावण भी यहां के अधीन था। जब रामचन्द्र के समय में विरूद्ध हो गया तो उस को रामचन्द्र के दण्ड देकर राज्य से नष्ट कर उस के भाई विभीषण को राज्य दिया था।
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स्वायम्भुव राजा से लेकर पाण्डवपर्यन्त आय्र्यो का चक्रवर्ती राज्य रहा। तत्पश्चात् आपस के विरोध से लड़ कर नष्ट हो गये क्योंकि इस परमात्मा की सृष्टि में अभिमानी,अन्यायकारी,अविद्वान् लोगों का राज्य बहुत दिन तक नहीं चलता। और यह संसार की स्वाभाविक प्रवृत्ति है कि बहुत सा धन असंख्य प्रयोजन से अधिक होता है तब आलस्य,पुरूषार्थरहितता,ईष्र्या द्वेष ,विषयासक्ति और प्रमाद बढ़ता है। इस से देश में विद्या सुशिक्ष नष्ट हो कर दुगुर्ण और दुष्ट व्यसन बढ़ जाते हैं। जैसे कि मद्य-मांससेवन, बाल्याव्स्था में विवाह और स्वेच्छाचारादि दोष बढ़ जाते हैं। और जब युद्धिविभाग में युद्धविद्याकौशल और सेना इतनी बढ़े कि जिस राज्य का सामना करने वाला भूगोल में दूसरा न हो तब उन लोगों में पक्षपात अभिमान बढ़ कर अन्याय बढ़ जाता है। जब ये दोष हो जाते है तब आपस में विरोध हो कर अथवा उन से अधिक दूसरे छोटे कुलों में से कोई ऐसा समर्थ पूरूष खड़ा होता है कि उन का पराजय करने में समर्थ होवे। जैसे मुसलमानों की बदशाही के सामने शिवा जी, गोविन्दसिंह जी ने खड़े होकर मुसलमानों के राज्य छिन्न-भिन्न कर दिया।
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