पुराने समय में एक राजकुमार तलवार चलाने से भी डरता था। राजा ने राजकुमार को तलवारबाजी सिखाने की बहुत कोशिश की थी, लेकिन उसे सफलता नहीं मिली।
राजकुमार में तलवार चलाने का साहस नहीं था, फिर भी पिता ने किसी तरह राजकुमार को थोड़ी बहुत तलवार चलाना सिखा दी। राजा ने राजकुमार को युद्ध में ले जाने की भी कोशिश कई बार की, लेकिन राजकुमार डर की वजह से युद्ध में नहीं जाता था।
राजा अपने पुत्र का डर दूर करने की कोशिश करते रहते थे, लेकिन राजकुमार की हालत वैसी की वैसी थी। एक दिन उनके राज्य पर दुश्मनों में आक्रमण कर दिया। राजा की सेना के मुकाबले दुश्मनों की सेना बहुत बड़ी थी। कुछ ही समय में राजा के सभी महारथी योद्धा युद्ध में मारे गए। अंत में राजा ही जीवित बचे थे।
जब राजकुमार को मालूम हुआ कि युद्ध में सब कुछ खत्म हो गया है तो वह भी हिम्मत करके महल से बाहर निकला। बाहर निकलते ही उसने देखा कि सामने से दुश्मनों की सेना आगे बढ़ रही है। वह डर गया। अपने महल की ओर भागने के लिए पीछे पलटा तो उसने देखा कि पीछे भी दुश्मनों की सेना ने उसके पिता को बंदी बना लिया है। राजा को बंदी बना देखकर महल के अंदर के सेवकों ने महल का दरवाजा बंद कर दिया, ताकि दुश्मन महल के अंदर न आ सके।
मैदान में राजकुमार अकेला और सामने दुश्मनों की सेना थी। उसके पास दो विकल्प थे। पहला ये कि वह समर्पण कर दे और दूसरा ये कि वह तलवार उठाकर दुश्मनों का सामना करे। राजकुमार ने दूसरा विकल्प चुना। उसने तलवार उठाई और वह दुश्मनों पर टूट पड़ा। राजा द्वारा सिखाई गई तलवारबाजी से वह दुश्मनों पर भारी पड़ने लगा।
राजकुमार को लड़ते देखकर महल के सेवकों को भी जोश आ गया और वे भी लड़ाई में कूद पड़े। कुछ ही देर में उन्होंने दुश्मनों को वहां से खदेड़ दिया और राजा को आजाद करवा लिया।
धर्मप्रेमी सुंदरसाथ जी, जब तक हम डरते हैं, किसी भी काम की शुरुआत नहीं कर पाते हैं। डर की वजह से ही हम सफलता से दूर रहते हैं। निडर होकर काम करने से ही कामयाबी मिल सकती है।