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ओशो :थोड़ा रो लेते तो हल्के हो जाते

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मैंने सुना है, एक घर में एक लडक़ा अपनी मां से बहुत नाराज हो गया। ज्यादा नहीं, कोई नौ साल का था। उसने बाथरूम में अपने को बंद कर लिया और दरवाजा ही न खोले। मां बहुत घबड़ा गई। दरवाजा पीटा मां ने, वह बोले ही नहीं। वह बिल्कुल सन्नाटे में खड़ा हो गया, बिल्कुल ध्यानस्थ हो गया भीतर। मां की घबड़ाहट बढ़ गई। पति दफ्तर गया हुआ है। क्या करे,क्या न करे? उसने पति को फोन किया। उसने कहा: भई समझाओ,निकाल लो। अब मैं आकर भी क्या करूंगा, अगर वह नहीं खोलता? जब कोई उपाय न रहा तो उसे याद आया कि पड़ोस में एक पुलिस वाला रहता है। शायद वह डरा-धमकाकर निकल सके। तो उसने पुलिस वालो को खबर की। पुलिस वाला आया। वह पास गया, उसने महिला से पूछा कि कौन है? कितनी उमर का है? उसने कहा: मेरा लडक़ा है, नौ साल का है। पुलिस वाला पास गया। उसने दरवाजे पर दस्तक दी आरै कहा: बिटिया,बाहर निकल आ।
वह लडक़ा एकदम दरवाजा निकला और उसने कहा: तुमने समझा क्या है? मैं लडक़ा हूं,लडक़ी नहीं। नौकरी की तलाश है..तो जीवन आधार बिजनेस प्रबंधक बने और 3300 रुपए से लेकर 70 हजार 900 रुपए मासिक की नौकरी पाए..अधिक जानकारी के लिए यहां क्लिक करे।
मगर इतनी-सी बात उसे बाहर ले आई। पुलिसवाला जानता है लोगों की मूढ़ताएं। उन्हीं से तो उसका चौबीस घंटे काम पड़ता है। उसने तरकीब निकाल ली-एक मनौविज्ञानिक तरकीब कि बिटयां,बाहर आ जा। लडक़ा गुस्से में आ गया। उसने कहा हद हो गई। कौन मुझे बिटियां कह रहा है?
छोटे-से-छोटे बच्चे कसे तुम जहर से भर देते हो। तुम उससे कहते हो: तुम लडक़ी ही हो।
प्रकृति ने पुरूष और स्त्री की आंख में भेद नहीं किया। दोनों में अश्रु की ग्रंथियां बराबर हैं। इसलिए पुरूष को भी रोना उतना ही आना चाहिए जितना स्त्री को। नहीं तो आंसू की ग्रंथि उतनी न बनाई होती प्रकृति ने,अगर पुरूष को राना नहीं था। लेकिन पुरूष ने अपने को रोक लिया है, अपने आंसू घोटकर पी गया है। उसकी वजह से पुरूष की आंख से गरिमा खो गइ है- रूखी-रूखी हो गई है:मरूस्थल जैसी हो गई है। गहराई खो गई है। जादू खो गया है। आंख में चमक नहीं रही है,चमत्कार नहीं रहा है। पत्रकारिकता के क्षेत्र में है तो जीवन आधार न्यूज पोर्टल के साथ जुड़े और 72 हजार रुपए से लेकर 3 लाख रुपए वार्षिक पैकेज के साथ अन्य बेहतरीन स्कीम का लाभ उठाए..अधिक जानकारी के लिए यहां क्लिक करे।
तुम जानकर चकित होओगे कि मनौविज्ञानिक कहते हैंं, कि दुनियां में दुगुनी संख्या में पुरूष पागल होते हैं स्त्रियां से,और दुगनी संख्या में मानसिक रोगों से ग्रस्त होते हैं, और दुगनी ही संख्या में पुरूष आत्महत्या करते हैं। और इसके बहुत कारण हैं। और उसमें एक कारण यह भी है कि पुरूष रोना भूल गया है। स्त्री को जब कभी कोई भाव बहुत घेर लेता है तो वह रो लेती है। रोकर हल्की हो जाती है। आंसुओं से भाव बह जाता है।
पुरूष के पास को बहाने का कोई उपाय नहीं है। सब भाव इकठ्ठे होते जाते हैं, इकठ्ठे होते जाते हैं, और एक ऐसी घड़ी आ जाती है कि झेलना असंभव हो जाता है। फिर कूद पड़े सत्रहवीं मंजिल से। थोड़ा रो लेते तो हल्के हो जाते।
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