हिसार

श्रीमद् भागवत कथा के दौरान किया समुन्द्र मंथन की कथा का वर्णन

हिसार,
जब अमृत की प्राप्ति के लिए देवों एवं असुरों ने समुद्र मंथन शुरू किया तब भगवान ने कच्छप का अवतार लिया एवं अपने ऊपर मथनी रखा जिससे समुद्र का मंथन हुआ। समुद्र मंथन में 14 रत्न की प्राप्ति हुई थी, सबसे पहले हलाहल विष निकला जिससे सभी देव एवं असुर डर गये। तब उन्होंने भगवान शंकर को पुकारा। भगवान शंकर ने उक्त विष को ग्रहण किया एवं विष को गले में संग्रहित रखा तभी से भगवान शंकर नीलकंठ कहलाए।
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यह बात मतलोढा धाम के परम संत श्री श्री 1008 श्री फूलपुरी महाराज की कृपापात्र शिष्या एवं डेरा की महंत साध्वी शक्तिपुरी ने बरवाला में नव निर्माण एजुकेशन एंड वेल्फेयर सोसायटी की ओर से बरवाला के वार्ड 4 स्थित अग्रवाल धर्मशाला में आयोजित श्रीमद् भागवत कथा के चौथे दिन श्रद्धालुओं को संबोधित करते हुए कही। कथा 11 जनवरी तक चलेगी। जीवन आधार जनवरी माह की प्रतियोगिता में भाग ले…विद्यार्थी और स्कूल दोनों जीत सकते है हर माह नकद उपहार के साथ—साथ अन्य कई आकर्षक उपहार..अधिक जानकारी के लिए यहां क्ल्कि करे।

उन्होंने कहा कि समुद्र मंथन से लक्ष्मी, ऐरावत हाथी, कोस्तु मणी, परिजात, धनवंतरी, चंद्रमा, कामधेनु, धनुष आदि रत्न का प्रादुर्भाव हुआ। सबसे अंत में अमृत का प्रादुर्भाव हुआ। उन्होंने कहा कि दूब घास अमृत की देन है इसलिए यह अमृत के समान पवित्र है। अमृत के लिए देव एवं असुर को आपस में लड़ता देख भगवान में मोहिनी अवतार लिया एवं मोहिनी ने देवों को अमृत का पान कराया। इससे असुर क्रोधित हो गये एवं देव पर आक्रमण कर दिया एवं स्वर्ग पर कब्जा कर लिया। इसके बाद देव भगवान नारायण के पास गये एवं राक्षसों से रक्षा की गुहार लगाई। नौकरी की तलाश है..तो जीवन आधार बिजनेस प्रबंधक बने और 3300 रुपए से लेकर 70 हजार 900 रुपए मासिक की नौकरी पाए..अधिक जानकारी के लिए यहां क्लिक करे।

इस पर भगवान ने अदिति की कोख से वामन के रूप में जन्म लिया जो भगवान का वामन अवतार कहलाया। भगवान ने वामन रूप कर राक्षसों के राजा बलि से तीन कदम की जमीन दान में मांगी। दानवीर बलि ने वामन द्वारा मांगे गये दान को स्वीकार किया तब वामन भगवान ने तीन कदम में पूरी सृष्टि को नाप लिया। राजा बलि भगवान की लीला से प्रभावित हुए एवं इंद्रलोक को मुक्त किया। कथा के दौरान वेल्फेयर सोसायटी के पदाधिकारियों व सदस्यों सहित सैंकड़ों श्रद्धालु मौजूद थे।
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