धर्म

परमहंस स्वामी सदानंद जी महाराज के प्रवचनों से—23

घने जंगल में एक नन्हा खरगोश भारी क़दमों से चला जा रहा था। उस घने जंगल में दूर गुस्से में किसी शेर की दहाड़ सुनाई दे रही थी। उसकी दहाड़ इतनी भयावह थी कि जंगल में रहने वाले पशु पक्षी डरकर काँपने लगते। ऐसे में भी नन्हा खरगोश शेर की दहाड़ की दिशा में चला जा रहा था। जब भी गुस्सैल शेर की दहाड़ सुनाई देती वह नन्हा खरगोश काँप उठता था।

उस गुस्सैल शेर के पास जाने का केवल एक ही परिणाम हो सकता था। मौत! पर आज वह खरगोश जान बूझ कर मौत के मुह में जा रहा था। आज उसे अपने जीवन का बलिदान देना था, अपने परिवार के लिए, अपने समाज के लिए और उस समझौते के लिए जो न हुआ होता तो शायद वो और उसके जैसे कई अन्य जानवर आज जीवित न होते। उस समझौते के लिए जो जंगल के जानवरों ने उस दुष्ट, गुस्सैल और घमंडी शेर से किया था।

उसे आज भी उस दुष्ट शेर की करतूतें याद थीं। कैसे वह कई-कई जानवरों का शिकार बिना वजह किया करता था। कुछ को खाता और कुछ को ऐसे ही मार कर छोड़ देता था। शेर मांसाहारी होता है और अपनी भूख मिटाने के लिए जानवरों का शिकार कर और उन्हें खाकर अपना पेट भरता है। पर इस दुष्ट शेर को अपनी ताकत और जंगल का राजा होने का इतना अधिक घमण्ड हो गया था कि वह अपना पेट भरा होने पर भी निरीह जानवरों का शिकार किया करता था।

उस घमंडी शेर के अत्याचारों से तंग आकर जंगल के सभी जानवर उसके पास गए और तभी यह सामझौता हुआ कि रोज एक अलग प्रजाति का जानवर शेर के पास भेजा जाएगा जिसको खाकर शेर अपना पेट भरेगा और किसी अन्य जानवर की हत्या नहीं करेगा। पर शेर ने एक शर्त ये भी रखी कि यदि ऐसा न हुआ तो शेर जंगल के सभी जानवरों को मार डालेगा।

इस प्रकार बेवजह की हत्या से बचने के लिए रोज अलग-अलग प्रजाति के जानवर शेर के पास जाने लगे। और आज नन्हे खरगोश की बारी थी।

नन्हा खरगोश भले ही शेर के सामने शक्ति में कुछ नहीं था पर वह बहुत बुध्दिमान था। और आज पूरे रस्ते वह उस दुष्ट शेर से बचने के उपाय सोचता हुआ जा रहा था। उस शेर से निपटने के उपाय ढूँढते-ढूँढते उसे थोड़ी देर हो गयी। पर यह अच्छा ही था। क्योंकि उसने जो उपाय सोचा था उसके लिए शेर का गुस्सा होना आवश्यक था।

अंततः खरगोश शेर के पास पहुँचा और उसके सामने कुछ दूरी पर हाथ जोड़कर खड़ा हो गया। पहले से ही गुस्साए शेर ने जब अपने भोजन के रूप में नन्हे से खरगोश को देखा तो वो और भी अधिक गुस्सा हो गया।

शेर बड़े जोर से दहाड़ा और बोला “जंगल के जानवरों ने इतनी देर से वो भी एक नन्हे से खरगोश को भेजकर अच्छा नहीं किया। अब मैं सबको मार डालूँगा।“

शेर की ऐसी धमकी सुन कर नन्हा खरगोश बोला “आपके लिए हम पाँच खरगोश चले थे लेकिन रास्ते में एक दुष्ट ने अन्य चार को खा लिया। मैं किसी तरह बचकर छिपते-छिपाते यहाँ तक आया हूँ।“

“तो तुम लोगों ने उसे बताया क्यों नहीं कि तुम लोग मेरे पास आ रहे हो?” शेर ने कहा।

बताया था महाराज लेकिन वो जंगल में नया आया लगता है। उसने हमारी एक न सुनी और कहा कि शेर कौन है उसे तो मैं बाद में देखूंगा पर आज से इस जंगल का राजा मैं हूँ और मैं जो चाहूँगा वही होगा।

इसपर शेर गुस्से से आग बबूला हो गया और बोला वो कहाँ मिला था मुझे बता मैं अभी उसका अंत करता हूँ।

खरगोश ने कहा “वो एक बिल में रहता है अगर आप कहें तो मैं आपको वहाँ ले चलूँ?”

इस प्रकार खरगोश शेर को एक कुएं के पास ले गया और बोला महाराज वो दुष्ट इसी बिल में रहता है। मुझे तो डर लग रहा है आप ही बात कर लीजिये।

शेर कुएं के पास गया और उसमे झांक कर देखा तो उसे कुएं के पानी में अपनी ही परछाईं दिखाई दी। अपनी परछाईं को दुश्मन समझ कर शेर जोर से दहाड़ा। इसपर कुएं में उसकी दहाड़ गूँज गयी और दुश्मन की दहाड़ के रूप में उसे वापस सुनाई दी। शेर ने सोचा ये दुश्मन तो अपने बिल से मुझे ललकार रहा है मैं इसे अभी ख़त्म करता हूँ। ऐसा सोचकर शेर ने कुएं में छलांग लगा दी।

पर ये क्या यहाँ तो कोई दुश्मन नहीं था, था तो सिर्फ पानी। अपनी ताकत के नशे में चूर दुष्ट शेर अब एक ऐसी जगह फंस गया था, जहाँ से निकलना उसके बस की बात नहीं थी। अब उसे इसी कुएं का पानी पी-पी कर मरना था।

इस प्रकार बुध्दिमान खरगोश ने दुष्ट शेर से जंगल के जानवरों को छुटकारा दिलाया।

प्यारे सुंदरसाथ जी, जो काम बल से नहीं हो सकता वो बुद्धि से किया जा सकता है। इसलिए हमें अपनी सफलता के लिए बल और बुद्धि दोनों का प्रयोग करना चाहिए। हमें अपने कार्य सिद्ध करने के लिए नए नए उपाय सोचते रहना चाहिए। गुस्से के वशीभूत होकर अनावश्यक खतरे नहीं लेने चाहिए। और ना कभी हमें अपनी ताकत का घमण्ड करना चाहिए।

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