धर्म

ओशो : अंहकार

गुरजिएफ के पास जब भी शिष्य जाता था, तो गुरजिएफ कहता था कि पहली बात खोजने की यही है कि तुम्हारे चरित्र का ढंाचा क्या हैं? तुम्हारे जीवन की सबसे बड़ी कमजोरी क्या हंै? जिंदगी की सबसे बड़ी जिद क्या हैं? तुम्हारी जिंदगी की बुनियादी भूल क्या हैं,जिसके आसपास सारी भूले घूमती हैं, परिभ्रमण करती है, परिक्रमा करती है। वह कहता था कि महीने-दो -महीने तुम सिर्फ इसी बात पर सोचो, काम इसके बाद शुरू होगा।
अक्सर ऐसा हो जाता है कि तुम्हारी बीमारी नहीं है वह तुम बताते हो मेरी बीमारी है। लोग बीमार भी बड़ी सोच-सोचकर बताते हैं कि जिस बीमारी में प्रंशसा हो वह बीमारी बताते हैं। लोभ हद के है। इलाज करवाना हो तो बीमारी को ही पकड़ हैं। उनको तो प्रशंसा करवानी है।जीवन आधार पत्रिका यानि एक जगह सभी जानकारी..व्यक्तिगत विकास के साथ—साथ पारिवारिक सुरक्षा गारंटी और मासिक आमदनी भी..अधिक जानकारी के लिए यहां क्लिक करे।

मैंने सुना है एक महिला अस्पताल में ऑपरेशन करवाने गई थी। कई दिन से जिद में पड़ी थी। पहले आती थी कि मेरी टान्सिल निकाल दो। फिर डॉक्टर ने कहा कि टॉन्सिल को निकालने की कोई जरूरत नहीं है,तेरे टॉन्सिल बिलकुल ठीक है। फिर आने लगी कि मेरी अपेन्डिक्स निकाल दो। डॉक्टर ने कहा कि भई, हमें लगे तो निकालें,तेरे मानने से नहीं निकाल सकते। उसने कहा-डॉक्टर तो कुछ तो निकाल दो। क्योंकि जब भी मैं कल्ब में जाती हूं,तो कोई स्त्री कहती है मेरी अपेन्डिक्स निकली है,कोई कहती है टान्सिल निकले हैं । मेरे पास बात करने तक को कुछ नहीं है।
मैंने एक और स्त्री के संबंध में सुना है कि जब ऑपरेशन की टेबल पर उसे लिटाया गया तो उसने कहा डॉक्टर चीरा जरा लम्बा मारना। अपेन्डिक्स निकाली जा रही हैं।जीवन आधार जनवरी माह की प्रतियोगिता में भाग ले…विद्यार्थी और स्कूल दोनों जीत सकते है हर माह नकद उपहार के साथ—साथ अन्य कई आकर्षक उपहार..अधिक जानकारी के लिए यहां क्लिक करे।
उसने कहा- लेकिन चीर लम्बा क्यों मारना है? लोग कहते है कि चीरा जर छोटा मारना कि पीछे उसका दिखावा न रह जाए,भद्दा न लगे।
उसने कहा कि नहीं, तुम तो जितना बड़ा मार सको मारना। क्योंकि मेरे पति को भी चीरा लगा है,उससे बड़ा होना चाहिए। क्योंकि वह हमेशा अकड़ बताते है कि देखों,कितना बड़ा चीरा लगा हैं,। यह अकड़ मुझसे नहीं सही जाती। आदमी के अंहाकर अजीब है।
एक महिला मेरे पास आती भी। उसके पति ने मुझे फोन किया कि आप इस की बातों का भरोसा मत करना। यह बड़ा-चड़ा कर बाते करती हैं। इसको फुन्सी हो जाए तो यह बताती है कैन्सर हो गया। इसकी बातों का भरोसा मत करना। मैं इसके साथ तीस साल से रह रहा हूं।

लोग बिमारियां बढ़ा-चढ़ाकर बताते हैं फिर बीमारियां भी वे जिनकी प्रशंसा होती हो। लोगों को चिन्ता नहीं है कि जीवन के असली सवाल क्या हैं।
गुरजिएफ कहता था: पहले अपनी ठीक-ठीक व्यवस्था पकड़ो। तुम्हारे जीवन की चिन्ता क्या हैं? असली सवाल क्या हैं? और अगर तुम न पकड़ पाओ,तो फिर मुझे कहना। नौकरी की तलाश है..तो जीवन आधार बिजनेस प्रबंधक बने और 3300 रुपए से लेकर 70 हजार 900 रुपए मासिक की नौकरी पाए..अधिक जानकारी के लिए यहां क्लिक करे।
बड़ा कठिन है पकडऩा कि हमार बुनियादी भूल क्या है। तुम सोचते हो क्रोध। अक्सर क्रोध बुनियादी भून नहीं होती, क्योंकि क्रोध तो केवल छाया है अहंकार की।
मेरे पास लोग आते हैं। वे कहते हैं,हम क्रोध से कैसे मुक्त हों। मैं उनसे पूछता हूं: यह तुम्हारी असली बीमारी है कि लक्षण? वे कहते हैं:यही हमारी बीमारी है। इसी से हम परेशान है। बहुत दुख होता है और बड़ी बेइज्जती भी होती है । और क्रोध आ जाता है तो लोग समझते है कि क्रोधी हैं।
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तो मैंने कहा,तुम क्रोध से परेशान नहीं हो। एक तो क्रोध होता ही है अंहकार के कारण, फिर यह तुम जो पूछने मुझसे आए हो कि क्रोध न हो, यह भ्ी अंहकार के लिए हैं- ताकि लोगों में प्रतिष्ठा रहे,कि आदमी बड़ा विन्रम है, बड़ा शान्त अक्रोधी है, साधु। जिस अंहकार के कारण क्रोध पैदा हो रहा है उसी अंहकार के कारण तुम मेरे पास क्रोध का इलाज खोजने आए हो। और बीमारी दोनों के पीछे एक है तो बीमारी हल कैसे होगी?
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