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भारत के पहले CJI, जिनके खिलाफ बागी हो गए उनके साथी

सुप्रीम कोर्ट के मौजूदा जजों ने प्रेस कॉन्फ्रेंस करते हुए कहा कि सुप्रीम कोर्ट का प्रशासन ठीक तरीके से काम नहीं कर रहा है, अगर ऐसा चलता रहा तो लोकतांत्रिक परिस्थिति ठीक नहीं रहेगी। साथ ही उन्होंने चीफ जस्टिस पर भी सवाल उठाए और कहा कि उन्होंने हमारी बात नहीं सुनी।

    आइए जानते हैं कौन हैं चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा..

जस्टिस दीपक मिश्रा ने 1977 में ओडिशा हाईकोर्ट से बतौर वकील करियर की शुरुआत की थी। इसके बाद 1996 में वह ओडिशा हाईकोर्ट के जज बने। इसके बाद साल 2009 में जस्टिस दीपक मिश्रा ने पटना हाईकोर्ट के चीफजस्टिस का पदभार संभाला था। जीवन आधार पत्रिका यानि एक जगह सभी जानकारी..व्यक्तिगत विकास के साथ—साथ पारिवारिक सुरक्षा गारंटी और मासिक आमदनी भी..अधिक जानकारी के लिए यहां क्लिक करे।

दीपक मिश्रा अपने फैसलों को लेकर भी कई बार विवादों में रहे हैं। सिनेमाघरों में राष्ट्रगान अनिवार्य करने को लेकर वो काफी चर्चाओं में रहे थे, हालांकि अब सुप्रीम कोर्ट ने इस फैसले को वापस ले लिया है। नौकरी की तलाश है..तो जीवन आधार बिजनेस प्रबंधक बने और 3300 रुपए से लेकर 70 हजार 900 रुपए मासिक की नौकरी पाए..अधिक जानकारी के लिए यहां क्लिक करे।
साल 1979 में उड़ीसा सरकार ने भूमिहीन किसानों के लिए एक योजना शुरू की थी, जिसमें मिश्रा ने लाभ उठाने के लिए एक शपथ पत्र दिया था, जिसकी वजह से वो चर्चा में रहे थे। इस शपथपत्र के बाद दीपक मिश्रा को जमीन आवंटित कर दी गई। लेकिन बाद में जब इस मामले की जांच हुई तो जांचकर्ता ने पाया कि यह जमीन धोखाधड़ी से आवंटित करवाई गई थी। पत्रकारिकता के क्षेत्र में है तो जीवन आधार न्यूज पोर्टल के साथ जुड़े और 72 हजार रुपए से लेकर 3 लाख रुपए वार्षिक पैकेज के साथ अन्य बेहतरीन स्कीम का लाभ उठाए..अधिक जानकारी के लिए यहां क्लिक करे।
वहीं 2002 में उन्होंने नुकसान का मुआवजा देने के लिए सरकार को नहीं कहा था, जिसकी वजह से उनका विरोध हुआ। इसके अलावा जस्टिस दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली बेंच ने ही साल 2012 के बहुचर्चित निर्भया गैंगरेप के दोषियों की फांसी की सजा को बरकरार रखा था।
मुंबई ब्लास्ट के दोषी याकूब मेमन को फांसी की सजा जस्टिस दीपक मिश्रा की अगुवाई वाली बेंच ने ही सुनाई थी। आजाद भारत में पहली बार सुप्रीम कोर्ट में रात भर सुनवाई चली थी। सुप्रीम कोर्ट में रात के वक्त सुनवाई करने वाले बेंच की अगुवाई जस्टिस दीपक मिश्रा ने ही की थी।
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