सौ भइया की बांह, तपै दुर्जोधन राना।
परे नरायन बीच,भूमि देते गरबाना।।
जुद्ध रचो कुरूक्षेत्र में बानन बरसे मेह।
तिनहीं के अभिमान तें गिधहुं न खायो देह।।
कहते हैं: जरा सोचो,जरा देखो। लौट कर पीछे देखो,क्या-क्या गुजरती रही? दुर्योधन ने कृष्ण के बीच में पडऩे पर भी,जरा-भी जमीन न दी, पांच डग जमीन न दी। ऐसा मोह पत्थरों का कि परमात्मा सामने खड़े हो तो भी लोग पत्थर चुनते हैं,परमात्मा नहीं चुनते।
लेकिन भूमि देने में अंहकार आ गया। उसने कहा कि एक इंच जमीन नहीं दूंगा। एक सुई की नोक-भर जमीन नहीं दूंगा।
तुम भी क्या कर रहे हो? किसकी जमीन? कहां से लाए? कहां ले जाओगे? क्यों इतने लड़े-मरे जा रहे हो?
ये कथाएं ऐतिहासिक नहीं है। इन कथाओं का मौलिक आधार मनोवैज्ञानिक है। इन सारी कथाओं के पीछे मनोविज्ञान का आधार हैं। यही तो म कर रहे हैं यही तो सारी दुनियां कर रही है:कैसे हमारी जमीन बढ़े,कैसे धन बढ़े,कैसे बैंक में बैंलेंस बढ़े। और अगर राम भी बीच में आकर खड़ा हो जाए,और कहे कि भई इतना नहीं, इतना ज्यादा न करो, इतना मत चूसो, इतने अंहकार से मत भरो, इस पद-प्रतिष्ठा में कुछ सार नहीं है, यह सब पड़ा रह जायेगा, जब बांध चलेगा बंजारा। सब पड़ा रह जाएगा… मगर कौन सुनता है, कब सुनता हैं? बुद्ध आए और कहते रहे, महावीर आए और कहते रहे। कौन सुनता हैं? हम अपनी धुन में लगे रहते हैं। हम पत्थर ही इक_े करते रहते हंै। यही पत्थर हमें बार-बार डूबोते रहते हैं।
जरा-सी जमीन के ऊपर… पांडव पांच गांव लेने को राजी थे… जरा सी जमीन के ऊपर भंयकर युद्ध हुआ। आकाश से जैसे वर्षा होती है जल की, ऐसे बाध बरसे, ऐसी मृत्यु बरसी।
और वे जो इतनी अकड़ से भरे थे, जब गिरे जमीन पर, तो इतनी लाशें पट गई थीं महाभारत के युद्ध में कि गिद्धों को भी खाने में रस नहीं रहा था,उत्सुकता नहीं रही थी।
जो इतने अंहाकरी थे,ऐसा सिर उठा कर चले थे,गिद्धों ने भी उनके सिर को खाने योग्य न समझा।
देखते हो,बुद्ध चलते हैं। युद्ध है क्या ? बस उन्हीं पत्थरों के लिए संघर्ष चल रहा है।
जोधा आगे उलट पुलट यह पुहमी करते। ऐसे बड़े योद्धा,जो पृथ्वी को उलट-पुलट देते हैं। और जब मौत आती है तो सारा वश खो जाता है,सारी सामथ्र्य खो जाती है।
मैंने सुना हैं, नेपोलियन जब हार गया तो सेंट हेलेना के द्वीप में उसे कैदी किया गया। पहले ही दिन सुबह नेपोलियन अपने डॉक्टर को लेकर घूमने निकला,और एक घसियारिन औरत अपना बड़ा घास का ग_र लिए पगडंडी पर चल रही है। डॉक्टर ने चिल्लाकर कहा हे स्त्री, हट जा रास्ते से। देखती नहीं कौन आ रहा है। सम्राट नेपोलियन आ रहे हैं।
नेपोलियन ने डॉक्टर का हाथ खींच कर रास्ते से नीचे उतर गया। और कहा: तुम भूलते हो। तुम चुकते हो। अब वे दिन गये, जब नेपालियन पहाड़ से कहता कि हट जा रास्ते से,तो पहाड़ हटता। अब तो घसियारिन भी हम से कह सकती है-हट जाओ रास्ते से।…. वक्त आ ही जाता है।
और जो समुद्रों का एक छलांग में लांघ जाते हैं,ऐसे बलशाली। हाथन पर्वत तौलते.. हाथ पर जो पर्वतों का तौल देते हैं… तिन धरि खायो काल.. मौत जब आती है,तो पता नहीं चलता कि मौत के दातों में कहां खो जाते हैं।
एक खाली होती है,दूसरी भरी आ जाती है। फिर एक खाली होती हैं, दूसरी भरी आ जाती है। ऐसा संसार…। एक वासना चुकी कि दूसरी आई। एक जन्म चुका कि दूसरा आया। एक संबंध टूटा कि दूसरा संबंध बना। एक मूढ़ता से बचे कि दूसरी मूढ़ता आई।
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