धर्म

परमहंस स्वामी सदानंद जी महाराज के प्रवचनों से—108

सबसे शक्तिशाली बाणापुर,जिसकी हजार भुजाएं थीं,आगे आया,परन्तु धनुष को उठाना तो दूर,हिला भी न सका। उसके बाद रावण, जिसने कैलास पर्वत को एक हाथ से उठा लिया था, फिर भी धनुष को नहीं उठा सका। उसके बाद बलि राजा,जो रावण को 6 महीने काख में दबा कर परिक्रमा करता था, फिर भी उस धनुष को नहीं उठा सका।

सब यह देखकर राजा जनक उदास होने लगे और बोले, हे वीरों मुझे नहीं पता था कि यह पृथ्वी,कायरों कमजोरों से भरी हुई है। अरे वीर कहलाने वालो अपने अपने धनुष-बाण,गदा,तलवार आदि से सभी शस्त्र राज्य में जमा करवा दो और अपने हाथों में चुडिय़ा पहन लो,क्योंकि कमजोर हाथों में शस्त्र शोभा नहीं देते। ये शस्त्र तो वीरों का भूषण है।

यह सुनकर लक्ष्मणजी को क्रोध आ गया और खड़े होकर कहने लगे,राजन् आपको पता नहीं इस सभा में सूर्यवंशी भी बैठे हुए हैं? क्या किसी में ताकत है जो सूर्यवंशियों की कलाइयों में चूडिय़ा पहना सके? राजा यह तसे केवल धनुष है,यदि भैया राम मुझे आज्ञा दे तो मैं पुरी पृथ्वी को हाथों में उठा सकता हूं।

विश्वामित्र ने कहा, लक्ष्मण क्रोध को शांत करो और बैठ जाओ,क्योंकि मुझे पता है तुम एक क्षण में धनुष को तोड़ सकते हो,परन्तु प्रतिज्ञानुसार जो धनुष तोड़ेगा,उसकी शादी सीता से होगी,अत: राम तुमसे बड़ा है। यदि ऐसा हुआ तो राम जिन्दगीभर कुंवारा रह जायेगा। अत: तुम बैठ जाओ।

विश्वामित्र ने राम की और स्नेहिल दृष्टि से देखा और कहा,बेटा राम आगे आओ और धनुष को तोडक़र सीता से सम्बन्ध जोड़ो।
गुरू आज्ञा शिरोधार्य करके श्रीराम खड़े हुए तथा उपस्थित सभी सन्त महात्मा गुरूजनों के चरणों में प्रणाम किया। सभी ने अपने अपने स्थान पर बैठे बैठे आशीर्वाद दिया। सभी के आशीर्वाद से तथा सभी की शुभकामनाओं से श्रीराम ने धनुष को फूल की भांति उठा लिया।

जैसे नाजुक फुल कमलों को तोड़ा हो ऐसे श्रीराम ने धनुष को दो भागों में तोड़ डाला। धनुष टूटते ही आकाश से देवताओं ने पुष्पों की बरसात की। सभी ओर आनन्द की लहर दौंड गई, श्रीराम मन्द-मन्द मुस्करा रहे हैं,गुरू चरणों में श्रीराम बार-बार प्रणाम कर रहे हैं।

इधर सीताजी हाथों में वरमाला लिए खड़ी है,परन्तु पांच मिनट हो गई सीताजी माला श्रीराम के गले में नही पहना सकी। सखियों ने इसका कारण देखा कि श्रीराम कद में लम्बे हैं,सीता का हाथ श्रीराम के सिर तक नहीं पहुंच रहे हैं, तो सखियों ने श्रीराम से प्रार्थना की,जीजाजी गर्दन झुका लो, ताकि हमारी बहन आपको वरमाला पहना दे। श्रीराम कुछ बोले उससे पहले लक्ष्मण जी ने कहा, हम सूर्यवंशी है, हमारा सिर कभी नहीं झुकता,कहकर हंस पड़े।

इतने में राजा जनक आए और सीता को गोद में भरकर ऊंचा उठाया और सीता ने अब भी वरमाला नहीं पहनाई,क्योंकि उसने सोचा कि यदि वरमाला जल्दी पहना दूंगी तो श्रीराम को सब मिलकर अन्दर ले जायेंगे,इसीलिए पांच-सात मिनट सीता श्रीराम के सौंदर्य को निहारती रही,अन्त में सखियों ने कहा सीता सखी। कहाँ खो गई हो वरमाला पहनाओ। तब सीता चौंकी और वरमाला श्रीराम के गले में डाली दी। चारों ओर आनन्द ही आनन्द छा गया, बाजे बजने लगे,तालियों की गडग़ड़ाहट से आकाश और धरती एक हो गए।

इधर राजा जनक ने कुमकुम पत्रिका देकर अपने सेवको को आयेध्या भेजा। राजा दशरथ ने पत्रिका पढ़ी जिसमें विधि-विधान करने के लिए आयोध्या निवासियों सहित राजा को निमंत्रण दिया गया था। दशरथ जी का हृदय खुशियों से भर उठा। प्रात: राजा दशरथ बारात लेकर जनकपुरी पहुंच गए। रजा जनक राजा दशरथ दोनों बाहों में बाहें डालकर गले मिले। बारात का बड़ा स्वागत किया।

श्रीराम,लक्ष्मण दोनो आए, पिताजी के चरणों में प्रणाम किया। पिता दशरथ ने दोनो को उठाया और अपनी छाती से लगा लिया। जनक ने दशरथजी से विनती की, हे महाराज आपके चार पुत्र हैं और मेरी चार राजकुमारियाँ हैं, यह शुभ कार्य साथ ही साथ हो जाएँ तो अच्छा रहेगा।

चारों राजकुमारियों का विवाह सानन्द सम्पन्न हुआ। सभी ने शुभ बेला में आयोध्या की ओर प्रस्थान किया। अयोध्या पहुंचने पर सभी नर-नारियों ने मंगल गीत गाए। राम-सीता,लक्ष्मण-उर्मिला,भरत-मांडवी,शत्रुघन-श्रुतकीर्ति,चारों की जोडिय़ा बहुत ही सुन्दर लग रही थी।

धर्म प्रेमी सज्जनों! विवाह उत्सव सात जन्मों का बंधन माना गया है। इसलिए इस पवित्र उत्सव पर शराब या अन्य नशों की पार्टी करके इसकी पवित्रता को नष्ट न करें। विवाह के फेरे सूर्यास्त से पहले ले और फिर गुरुजनों का आशीर्वाद ले। इसके बाद आप रात्रि में भोज का आयोजन कर सकते है। विवाह उत्सव को पूर्ण रूप से सात्विक बना रहने दे।

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