धर्म

स्वामी राजदास : धर्मात्मा की पहचान

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धर्मात्मा की पहचान यह देखकर की जा सकती है कि वह अपनी ताकत का इस्तेमाल किस प्रकार के कामों में कर रहा है? यदि किसी के पुण्यात्मा या पापी होने की परीक्षा लेनी हो तो देखना चाहिए कि वह अपने निकटवर्ती लोगों के साथ कैसा वर्ताव करता है? यदि वह सहानुभूति, उदारता, भलमनसाहत और ईमानदारी का बर्ताव करता हो तो समझना चाहिए कि यह धर्मात्मा है और यदि कटुभाषण निंदा, कुढ़न, अनुदारता, द्वेष और कपट से उसका व्यवहार भरा हुआ हो तो समझ लेना चाहिए कि यह धर्मात्मा नहीं है।

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नीति का वाक्य है कि-दुष्ट पुरुष विद्या को विवाद में, धन को अहंकार में, बल को पर पीड़ा में लगाते हैं, इनके विपरीत धर्मात्मा पुरुष विद्या से संसार में ज्ञान का प्रकाश करते हैं, धन को दान करते हैं और बल से निर्बलों की रक्षा करते हैं। मनुष्य में यह तीन बल ही प्रधान हैं। ज्ञान द्वारा संसार की सेवा करने वाले ब्राह्मण हैं, बल द्वारा संसार का उपकार करने वाले क्षत्रिय हैं, धन द्वारा विश्व कल्याण की साधना करने वाले वैश्य है।

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जो लोग इन तीनों शक्तियों के स्वामी होते हुए भी इनका दुरुपयोग करते हैं वह अधर्म हैं पापी हैं। देवता और असुरों में एक ही अन्तर है कि देवता अपनी शक्तियों द्वारा दूसरों का हित साधन करते हैं, सहारा देते हैं। जबकि असुर लोग किसी के कष्ट या अभाव की परवाह न करते हुए अपनी तृष्णा को तृप्त करने में अंधे रहते हैं, यही धर्मात्मा और पापी की पहचान है।
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