धर्म

सत्यार्थप्रकाश के अंश—20

राजा और राज्यसभा के सभासद् तब हो सकते हैं कि जब वे चारों वेदों की कर्मापासना ज्ञान विद्याओं के जाननेवालों से तीनों विद्या सनातम दण्डनीति न्यायविद्या आत्मविद्या अर्थात् परमात्मा के गुण,कर्म,स्वभाव ,रूप को यथावत् जाननेरूप ब्रह्मविद्या और लोक से वार्ताओं का आरम्भ सीखकर सभासद् वा सभापति हो सकें।
सब सभासद् और सभापति इन्द्रियों को जीतने अर्थात् अपने वश में रख के सदा धर्म में वर्ते और अर्धम से हठे हठाए रहैं। इसलिये रात दिन नियत समय में योगाभ्यास भी करते रहैं,क्योंकि जो अजितेन्द्रिय कि अपनी इन्द्रियों को जीते बिना बाहर की प्रजा को अपने वश में स्थापन करने को समर्थ कभी नहीं हो सकता। जीवन आधार प्रतियोगिता में भाग ले और जीते नकद उपहार

दृढ़ोत्साही होकर जो काम से दश और क्रोध से आठ दुष्ट व्यसन कि जिनमें फंसा हुआ मनुष्य कठिनता से निकल सके उन को प्रयत्न से छोड़ और छुड़ा देवे।
क्योंकि जो राजा काम से उत्पन हुए दश दुष्ट व्यसनों में फंसता है वह अर्थ अर्थात् राज्य धनादि और धर्म से रहित हो जाता है और जो क्रोध से उत्पन्न हुए आठ बुरे व्यसनों में फंसता है वह शरीर से भी रहित हो जाता है।
काम से उत्पन्न हुए व्यसन गिनाते हैं, देखों-मृगया खेलना,अर्थात् चोपड़ खेलना, जुआ खेलनादि,दिन में सोना, कामकथा व दूसरे की निन्दा किया करना,स्त्रियों का अति संग,मादक द्रव्य अर्थात् मद्य अफीम ,भांग ,गांजा,चरस आदि का सेवन,गाना ,बजाना,नाचना, वा नाच कराना सुनना और देखना,वृथा इधर-उधर घुमते रहना ये दश कामोत्पन्न व्यसन हैं। पार्ट टाइम नौकरी की तलाश है..तो यहां क्लिक करे।
क्रोध से उत्पन्न व्यसनों को गिनाते हैं-पैशुन्यम् अर्थात् चुगली करना,साहस बिना विचारे बालात्कार से किसी की स्त्री से बुरा काम करना,द्रोह=द्रोह रखना,ईष्र्या अर्थात् दूसरे वा उन्नति देख कर जला करना, असूया दोषों में गुण,गुणों में दोषरोपण करना,अर्थदूषण अर्थात् अधर्मयुक्त बुरे कामों से धनादि का व्यय करना,वाग्दण्ड ,कठोर वचन बोलना और पारूष्स= विना अपराध कड़ा वचनवा विशेष दण्ड ये आठ गुण दुगुर्ण क्रोध से उत्पन्न होते हैं।
जिसे सब विद्वान् लोग कामज और क्रोधजों का मूल जानते हैं कि जिस से ये सब दुर्गुण मनुष्य को प्राप्त होते हैं उस लोभ को प्रयत्न से छोड़े।
काम के व्यसनों में बड़े दुर्गुण एक मद्यादि अर्थात् मदकारक द्रव्यों का सेवन,दूसरा पासों आदि से जुआ खेलना, तीसरा स्त्रियों का विशेष संग चौथा मृगया खेलना ये चार महादुष्ट व्यसन है। जीवन आधार न्यूज पोर्टल के पत्रकार बनो और आकर्षक वेतन व अन्य सुविधा के हकदार बनो..ज्यादा जानकारी के लिए यहां क्लिक करे।
और क्रोधजो में बिना अपराध दण्ड देना कठोर, वचन बोलना और धनादि का अन्याय में खर्च करना ये तीन क्रोध से उत्पन्न हुए बड़े दु:खदायक दोष है।
जो ये सात दुगुर्ण दोनों कामज और क्रोधजो दोषों में गिने हैं इन से पूर्व-पूर्व अर्थात् व्यर्थ से कठोर वचन, कठोर वचन से अन्याय से दण्ड देना,इस से मृगया खेलना, इस स्त्रियों का अत्यन्त संग इस से जुआ अर्थात् द्यूत करना और इस से भी मद्यादि सेवन करना बड़ा दुष्ट व्यसन है।
इस में निश्चय है कि दुष्ट व्यसन में फंसने से मर जाना अच्छा है क्योंकि जो दुष्टचारी पुरूष है वह अधिक जियेगा तो अधिक-अधिक पाप करके नीच-नीच गति अर्थात् अधिक-अधिक दु:ख को प्राप्त हो जायेगा और जो किसी व्यसन में नहीं फंसा वह मर जायगा तो भी सुख को प्राप्त होता जायेगा। इसलिये विशेष राजा और सब मनुष्यों को उचित है कि कभी मृगया और मद्यापानादि दुष्ट कामों में न फंसे और दुष्ट व्यसनों से पृथक् होकर धर्मयुक्त गुण, कर्म ,स्वभावों में सदा वत्र्त के अच्छे-अच्छे काम किया करें।
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