एक महिला मेरे पास आई। उसका बच्चा फेल हो गया। वह कहने लगी कि बड़ा अन्याय हो रहा है। ये सब शिक्षक और यह सब शिक्षा की व्यवस्था, सब धोखेबाज, बेईमान हैं। जिन्होंने शिक्षकों को रिश्वतें खिला दीं, वे तो सब उत्तीर्ण हो गए, मेरा लड़का फेल हो गया। मैंने कहा, इसके पहले भी तेरा लड़का पास होता आया था, तब तू कभी भी न आई कहने कि मेरा लड़का पास हो गया, जरूर किसी न किसी ने रिश्वत खिलाई होगी। जब तेरा लड़का पास होता है, तब अपनी मेहनत से पास होता है; जब दूसरों के लड़के पास होते हैं, तब रिश्वत से पास होते हैं!
तुमने कभी देखे ये दोहरे मापदंड? जब तुम सफल होते हो तो होना ही था, तुम प्रतिभाशाली हो। और जब दूसरा सफल होता है, बेईमान! कहीं कोई धोखे का रास्ता निकाल लिया। कोई चालबाजी कर गया। जब तुम हारते हो तो अपने पुण्यात्मा होने की वजह से हारते हो। और जब दूसरा हारता है तो पापी है, अपने कर्मों की वजह से हारता है। तुमने कभी ये दोहरे मापदंड देखे? पर यह मापदंड ठीक हैं फैलाव के रास्ते पर, क्योंकि फैलाव यानी प्रतिस्पर्धा। फैलाव यानी गलाघोंट संघर्ष। फैलाव यानी लड़ना है दूसरे से। एक-एक इंच जमीन के लिए लड़ना है। एक-एक इंच पद के लिए लड़ना है। एक-एक इंच धन के लिए लड़ना है।
महावीर इस पहले सूत्र में ही तुम्हें मौत का पहला पाठ देते हैं। वे कहते हैं, जो तुम अपने लिए चाहते हो, वही दूसरों के लिए भी चाहो। चाह मरेगी ऐसे। फिर चाह जी न सकेगी। चाह की जड़ ही काट दी। जो तुम अपने लिए चाहते हो, वही दूसरों के लिए भी चाहो।
जरा सोचो तुम चाहते थे कि एक महल बन जाए–दूसरों के लिए भी! उस चाह में ही तुम पाओगे कि तुम्हारे महल बनाने की चाह गिर गई। तुम चाहते थे, ऐसा हो वैसा हो, वही सबको भी हो जाए–अचानक तुम पाओगे, पैरों के नीचे से किसी ने जमीन खींच ली।
और जो तुम अपने लिए नहीं चाहते, वह दूसरों के लिए भी मत चाहो। लोगों ने अपने लिए तो स्वर्ग की कल्पनाएं की हैं, और दूसरों के लिए नर्क का इंतजाम किया है। जब भी तुम सोचते हो अपने लिए तो स्वर्ग में सोचते हो, कल्पना करते हो। नहीं, अगर तुम अपने लिए नर्क नहीं चाहते तो दूसरे के लिए भी मत चाहो।