धर्म

परमहंस संत शिरोमणि स्वामी सदानंद जी महाराज के प्रवचनों से—169

स्कूल में बच्चों के द्वारा प्रयोग की जाने वाली पैंसिल सदा हमारे लिए मार्गदर्शक का काम करती है। पैंसिल में पांच ऐसे गुण हैं, जिन्हें यदि तुम अपना लो तो तुम सदा इस संसार में शांतिपूर्वक रह सकते हो।

पहला गुण :-
पैंसिल के भीतर उसका सिक्का होता है। जिसे छीलकर निकालना पड़ता है। इसी प्रकार तुम्हारे भीतर महान से महान उपलब्धियां प्राप्त करने की योग्यता है, किन्तु तुम्हें यह कभी भूलना नहीं चाहिए कि तुम्हे एक ऐसे हाथ की आवश्यकता है जो निरन्तर तुम्हारा मार्गदर्शन करे। हमारे लिए वह हाथ ईश्वर का हाथ है जो सदैव हमारा मार्गदर्शन करता रहता है।

दूसरा गुण:-
पैंसिल से लिखते-लिखते बीच में मुझे रुकना पड़ता है और फ़िर कटर से पेंसिल की नोक बनानी पड़ती है। इससे पेंसिल को थोड़ा कष्ट तो होता है, किन्तु बाद में यह काफ़ी तेज़ हो जाती है और अच्छी चलती है। इसलिए धर्मप्रेमी सुंदरसाथ जी! तुम्हें भी अपने दुखों, अपमान और हार को बर्दाश्त करना आना चाहिए, धैर्य से सहन करना आना चाहिए। क्योंकि ऐसा करने से तुम एक बेहतर मनुष्य बन जाओगे।

तीसरा गुण:-
पेंसिल हमेशा गलतियों को सुधारने के लिए रबर का प्रयोग करने की इजाज़त देती है। इसका यह अर्थ है कि यदि हमसे कोई गलती हो गयी तो उसे सुधारना कोई गलत बात नहीं है। बल्कि ऐसा करने से हमें न्यायपूर्वक अपने लक्ष्यों की ओर निर्बाध रूप से बढ़ने में मदद मिलती है।

चौथा गुण:-
एक पेंसिल की कार्य प्रणाली में मुख्य भूमिका इसकी बाहरी लकड़ी की नहीं अपितु इसके भीतर के ‘ग्रेफाईट’ की होती है। ग्रेफाईट या लेड की गुणवत्ता जितनी अच्छी होगी, लेख उतना ही सुन्दर होगा। इसलिए सुंदरसाथ जी! तुम्हारे भीतर क्या हो रहा है, कैसे विचार चल रहे हैं, इसके प्रति सदा सजग रहो।

अंतिम गुण:-
पेंसिल सदा अपना निशान छोड़ देती है। धर्मप्रेमी सुंदरसाथ जी! ठीक इसी प्रकार तुम कुछ भी सत्कर्म करते हुए अपना निशान छोड़ते जाओ। अतः सदा ऐसे कर्म करो जिनसे सगे,सम्बंधी,समाज-देश का भला हो और तुम्हारा और तुम्हारे परिवार का सिर गर्व से उठा रहे।

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