धर्म

परमहंस स्वामी सदानंद जी महाराज के प्रवचनों से—111

श्रीराम और लक्ष्मण सीता की खोज करते करते मांगत ऋषि के आश्रम में आए। वहां एक भील कन्या शबरी,जो सत्रह साल की उम्र में उस आश्रम में आई थी, अब 80 साल की हो चुकी है, श्रीरामजी और लक्ष्मण को देखकर अत्यन्त प्रसन्न हुई, चरणों में प्रणाम किया, हे राम, आज मैं धन्य हो गई। 63 साल मैं आपके दर्शन की प्यासी थी और परमधाम जाते समय मेरे गुरूदेव ने कहा था, शबरी तुम इसी आश्रम में रहकर राम के आने का अन्तजार करना, एक दिन वे अवश्य आयेंगे। मैं अधम जाति की भील कन्या हूं भगवान्। आप मेरी भक्ति-पूजा के फलस्वरूप यहाँ नहीं पधारे, बल्कि गुरूदेव के कथन को सत्य करने के लिए आपने कृपा करके मुझे दर्शन दिए।

यह शबरी पिछले जन्म में किसी राजा की रानी थी। वह धन से तो सेवा करती थी परन्तु तन से नहीं। एक बार वह प्रयागराज गई, वहां पर कई सन्तों से मिलना हुआ। अगले जन्म में किसी सच्चे सन्त की सेवा मैं तन से कर सकूं ऐसी इच्छा करते हुए उसने आत्म-विसर्जन कर दिया। उसी रानी का इस जन्म में भील जाति में शबरी के रूप में जन्म हुआ।

शबरी के विवाह का दिन आया। उसके पिता ने भोजन की तैयारियां प्रारम्भ की। भोजन में हजार मुर्गे तथा हजार बकरे भी मंगवाये गए, जिनका माँस का उपयोग होना था। शबरी ने सोचा कि इस दिन निरापराध प्राणियों की हत्या मेरे कारण ही तो कि जायेगी। शबरी का मन ग्लानि से भर गया, वह सन्ध्या के समय बिना किसी को कुछ बताए घर से भाग गई। दौड़ते दौड़ते वह पंपा सरोवर के किनारे पहूंची, वहां मंगत ऋषि का आश्रम देखा। वह अंदर गई,मुनि से सारा हाल कह दिया। दिन में शबरी सारा दिन वृक्ष पर बैठी रहती और राम को छुप छुप कर सन्तों की सेवा करती। दान,सेवा और भजन यह तीनों कार्य गुप्त करने चाहिएँ।

धर्म प्रेमियों सत्कार्य कोई भी करो, गुप्त रखो, उसका ढिंढोरा मत पीटो। ऐसा करने से उसका फल न के बराबर हो जाता है। मैंने पहले भी बताया है कि जब राम को सब सो जाएँ उस समय शान्ति का वातावरण होता है, खाली दिमाग होता है, उस समय परमात्मा का भजन 15-20 मिनट अवश्य करो। गुप्त किया हुआ दान और फल हजार गुणा फलदायी होता हैं।

शबरी को सेवा करते एक दिन ऋषि ने देख लिया। पूछा बेटी, तुम कौन हों? शबरी ने कहा हे ऋषिवर मैं भील कन्या हूं,तथा मेरा नाम श्रवणा हैं। गुरूदेव ने उस पर कृपा का हाथ रखा,और सोचा,यह कन्या हीन जाति की जरूर हैं ,परन्तु हीनकर्मा नहीं है। अत: उन्होंने उसे राम मंत्र के नाम की दीक्षा दी और कहा, बेटी तुम यहीं आश्रम में रहकर नाम जाप करो तुम्हारा कल्याण अवश्य होगा।

एक दिन ऋषि ब्रह्मलोक जाने की तैयारी करने लगे तो शबरी को बहुत दु:ख हुआ। वह आकर रोने लगी और चरणों में गिर पड़ी तथा कहने लगी,पिता जी आपके चले जाने के बाद मेरा क्या होगा? ऋषि ने शबरी को सान्तवना दी और कहा, बेटी राम-मन्त्र का जाप अधिक से अधिक करना, श्रद्धा और विश्वास के साथ राम के आने की प्रतीक्षा करना। एक दिन वह तेरी कुटिया में अवश्य आयेंगे। ऐसा कहकर ऋषि ब्रह्मलोक चले गए।

शबरी राम का इन्तजार करती करती बूढी हो गई। बाल सफेद हो गए। मुख पर झुरियां पड़ गई, परन्तु गुरूदेव के वचनों पर दृढ़ विश्वास है कि एक दिन राम अवश्य आयेंगे। जब पता चला कि राम आज आयेंगे, तो खुशी से नाचने लगी।

आखिर सीता की खोज करते करते श्रीराम और लक्ष्मण दोनों आ ही गए। शबरी ने चरणों में साष्टांग प्रणाम किया और आँखों से प्रमाश्रुओं की धारा बहने लगी और कहने लगी हे राम आ मेरी भक्ति के फलस्वरूप नहीं बल्कि मेरे गुरूदेव के वचन को सत्य करने के लिए मेरी कुटिया में पधारे हैं। आज तो प्रभु यहीं विश्राम कीजिए।

शबरी बेर ले कर आई और चख चख कर, कहीं खट्टे तो नहीं है, श्रीराम को खिलाने लगी। वह प्रेम में यह भूल गई कि भगवान् को जूठे बेर खिला रही हूं। राम बड़े प्रेम से भोग लगा रहे हैं और बेर मीठे हैं कह कर प्रशंसा कर रहे हैं। जहां प्रेम होता है वहां मिठास हजार गूणा बढ़ जाती हैं। राम ने लक्ष्मण से कहा, लो भाई तुम भी बेर खाओ। बहुत मीठे हैं। लक्ष्मणजी मुसीबत में पड़ गए,कभी उस काली कलूटी बुढिया को देख रहे हैं तो कभी उन झूठे बेरे को देख रहे हैं, वह बेर लक्ष्मणजी से खाए नहीं गए और हाथ जोडक़र बोले श्रीराम प्रेम से बेरों को खा रहे हैं,वह तो प्रेम के भुखे हैं।

प्रेम में निर्मल है, स्वच्छ हैं, शुद्ध है, पवित्र है, परन्तु लक्ष्मणजी ने बेर नहीं खाएं और फेंक दिए। श्रीराम ने देखा,मुस्कुराए परन्तु बोले कुछ नहीं, मन ही मन में कहा-लक्ष्मण। यही बेर संजीवनी बूटी बनकर एक दिन तुम्हारे जीवन को बचायेंगे। आगे चलकर ऐसा ही हुआ।

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