धर्म

ओशो : सत्य ​का बोध

अडोल्फ हिटलर ने यही अपनी आत्मकथा मेन कैम्फ में लिखा है कि झूठ को दोहराते जाओ, दोहराते-दोहराते एक दिन सच हो जाता है। सुनो ही मत किसी, दोहराते जाओ।
बार-बार सुनने से लोगों को भरोसा आने लगता है कि सच ही होगा- जब इतनी जगह दोहराया जा रहा है, इतने लोग दोहरा रहे हैं, इतने मंदिर-मस्जिद, इतने पंडित-पुरोहित,इतने मौलवी दोहरा रहे हैं एक ही बात। मां-बाप, स्कूल, समाज, संस्कृति-सब दोहरा रहे है: ईश्वर है। इस दोहराने वालो की जमात में तुमने भी दोहराना शुरू कर दिया। और धीरे-धीरे लगेगा कि सच हो गया है। लेकिन झूठ कभी सच नहीं होता।

दोहराने से कैसे कोई बात सच हो सकती है। तुम लाख दोहराते रहो कि यह पत्थर गुलाब का फूल है। पत्थर पत्थर है, गुलाब का फूल नहीं होगा। लेकिन यह हो सकता है कि बहुत बार दोहराने से तुम्हें गुलाब का फूल दिखायी पडऩे लगे। वह झूठा गुलाब का फूल होगा। वह सपना है, जो तुमने पत्थर पर आरोपित कर लिया। कुछ दिन मत दोहराओ,फिर पत्थर पत्थर हो जायेगा। पत्थर कभी कुछ और हुआ ही न था। पत्थर पत्थर ही था। सिर्फ दोहराने से तुम भ्रंाति में पड़े थे।

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सब चीजें तुमने झूठ कर डाली हंै। तुमने धर्म भी झूठ कर डाला है। इसलिए बुद्ध कहते हैं: न तो ईश्वर को मानने की जरूरत है, न आत्मा को मानने की जरूरत है। मानने की जरूरत ही नहीं है। मानने की जड़ काटने के लिए उन्होंने कहा, ईश्वर नहीं है, आत्मा नहीं है।
ऐसा नहीं कि ईश्वर नहीं है। ऐसा नहीं कि आत्मा नहीं है। ऐसा तो बुद्ध कैसे कहेंगे। बुद्ध जानते हैं।
लेकिन तुम्हारी भं्रातियां बहुत हो चुकी और उनकी जड़ काटनी जरूरी है। और एक ही तरह से जड़ कट सकती है- कि बुद्ध जैस पुरूष कह दे कि नहीं कोई ईश्वर है और नहीं कोई आत्मा है, ताकि तुम झकझोरे जाओ, ताकि तुम्हारी भ्रांति के बाहर तुम आओ। ताकि तुमने जो झूठ निर्मित कर लिए हैं और झूठो के आधारों पर जो भवन खड़े कर लिये हैं, वे गिर जाएं। तुम्हारे ताश के पत्तों से बने घर को फूंक मारी। बुद्ध ने कागज की नावों को डूबा दिया तुम्हारे सामने बेरहमी से डूबा दिया।

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इसलिए तो यह देश बुद्ध को माफ नहीं कर पाया। इस देश ने बुद्ध को इस देश से ही उखाड़ फेंका।
जो तुम्हारे ताश के महलों को गिराएगा,उससे तुम नाराज हो ही जाओगे। जो तुम्हारे सपनों को तोड़ेगा और तुम्हें नींद से उठाएगा,उसके तुम दुश्मन हो ही जाओगे। और जैसा अथक प्रयास बुद्ध ने किया, किसी और ने कभी नहीं किया।
बुद्ध की चोट संघातक है। जो हिम्मतवार थे और जिन्होने झेल ली अपनी छाती पर, वे नए हो गए, उनका नया जन्म हो गया। जो कमजारे थे, वे कू्रद्ध हो गए। जो कमजोर थे, उन्होंने बदला लिया। बुद्ध के सामने तो न ले सके, लेकिन बुद्ध के जाने पर बदला लिया।
जिस देश में बुद्ध जैसा व्यक्ति पैदा हुआ, उस देश में बौद्धों का नाम मात्र न रहा। यह कैसे हुआ होगा? जरूर इस देश के मन में बड़ी प्रतिक्रिया हुई होगी- कि हमारा भगवान झूठ? हमारी आत्मा झूठ? हमारे शास्त्र झूठ? हमारे वेद झूठ। हम झूठ? सब झूठ। सिर्फ यह एक आदमी गौतम बुद्ध सच।
ऐसा बुद्ध ने कहा नहीं था कि सिर्फ मैं सच। बुद्ध ने इतना ही कहा था:मान्यता झूठ ,जानना सच। विश्वास झूठ, बोध सच। यही बुद्धत्व धर्म का सार है।

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बोध सच। जागो जागकर देखो । बोध सच। मानकर मत देखो। क्योंकि मानकर देखने से तो तुम्हारी आंख पर चशमा हो जाता है- मानने का चश्मा। तुमने मान लिया कि जगत लाल है। और मानते चले गए। और लाल को ही देखते चले गए। देखने की चेष्टा करते हो, सम्हालते रहे। इसी को तो लोग साधना कहते है- लाल को देखने की चेष्टा। फिर एक दिन तुम्हें दिखायी पडऩे लगा। हरे वृक्ष लाल मालूम होने लगे। नीला आकाश लाल मालूम होने लगा। तब तुमने समझा कि अब पहूंच गए।
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