धर्म

परमहंस संत शिरोमणि स्वामी सदानंद जी महाराज के प्रवचनों से—378

एक बार एक गाँव में एक भला आदमी बेरोजगारी से दुखी था। यह देख एक चोर को उस पर दया आ गई। वह उस बेरोजगार आदमी के पास गया और बोला, “मेरे साथ चलो, चोरी में बहुत सारा धन मिलेगा। “आदमी बैकार बैठे-बैठे परेशान हो गया था। इसलिए वह उस चोर के साथ चोरी करने को तैयार हो गया। लेकिन अब समस्या यह थी कि उसे चोरी करना आता नहीं था। उसने साथी से कहा, “मुझे चोरी करना आता तो नहीं है, फिर कैसे करूँगा।” चोर ने कहा “तुम उसकी चिंता मत करो, मैं तुम्हें सब सिखा दूंगा।”

अगले दिन दोनों रात के अँधेरे में गाँव से दूर एक किसान का पका हुआ खेत काटने पहुँच गए। वह खेत गाँव से दूर जंगल में था, इसीलिए वहां रात में कोई रखवाली के लिए आता जाता न था। लेकिन फिर भी सुरक्षा के लिहाज़ से उसने अपने नए साथी को खेत की मुंडेर पर रखवाली के लिए खड़ा कर दिया और किसी के आने पर आवाज लगाने को कहकर खुद खेत में फसल चोरी करने पहुँच गया।नए साथी ने थोड़ी ही देर में अपने साथी को आवाज लगाई,” भाई जल्दी उठो, यहाँ से भाग चलो…खेत का मालिक पास ही खड़ा देख रहा है।” चोर ने जैसे ही अपने साथी की बात सुनी वह फसल काटना छोड़ उठकर भागने लगा।

कुछ दूर जाकर दोनों खड़े हुए तो चोर ने साथी से पूछा, “मालिक कहाँ खड़ा था? कैसे देख रहा था? नए चोर ने सहजता पूर्वः जवाब दिया, “मित्र! ईश्वर हर जगह मौजूद है। इस संसार में जो कुछ भी है उसी का है और वह सब कुछ देख रहा है। मेरी आत्मा ने कहा, ईश्वर यहां भी मौजूद है और हमें चोरी करते हुए देख रहा है…इस स्थिति में हमारा भागना ही उचित था। पहले चोर पर बेरोजगार आदमी की बातों का इतना प्रभाव पड़ा की उसने चोरी करना ही छोड़ दिया और मेहनत मजदूरी करने लग गया।

धर्मप्रेमी सुंदरसाथ जी, संगति किजै साध की जो मन का मैल धोएं, खुद पवित्र होत है—दूजे को भी कर जाएं।

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