धर्म

परमहंस स्वामी सदानंद जी महाराज के प्रवचनों से—112

श्रीराम ऋष्यमूक पर्वत के समीप आए। वहां सुग्रीवजी रहते थे। सर्वप्रथम वहां हनुमानजी से मिलन हुआ जो बा्रह्मण के वेष में थे। श्रीराम ने अपना परिचय दिया, मैं राम हूँ और यह मेरा छोटा भाई लक्ष्मण है। हम दशरथ के पुत्र हैं। पिताजी की आज्ञा शिरोधार्य करके हमे यहां 14 वर्ष का बनवास काटने के लिए आये थे परन्तु कोई दुष्ट मेरी पत्नी सीता का हरण करके ले गया,उसी की खोज करते करते हम यहां तक आए हैं।

हनुमानजी अपने असली रूप में प्रकट हुए और सुग्रीवजी से श्रीरामजी की मैत्री करवा दी। जीव यदि परमात्मा से मैत्री कर ले तो दु:ख संकट अपने आप समाप्त हो जाते हैं। परमात्मा उसको अपना लेते हैं और उसको भी अपना स्वरूप बना देते हैं। प्रेम पूर्ण से ही करो। जीव अपूर्ण है, जगत् अपूर्ण है। अत: परमात्मा पूर्ण है उससे प्रेम करनेवाला पूर्ण ही बन जाता है। धर्म पे्रमी बन्धुओं लौकिक प्रेम को धीरे-धीरे घटाते जाओ और परमात्मा से प्रेम को बढ़ाते जाओ।

हनुमानजी ने श्रीरामजी की मैत्री सुग्रीव से करवाई। सुग्रीव ने चरणों में प्रणाम किया। श्रीरामजी ने सुग्रीव को दु:खी देखा तो पूछा, भैया सुग्रीव तुम इतने दु:खी क्यों हो? क्या कारण है बताओ? मैं हर तरह से तुम्हारी सहायता करूंगा। सुग्रीव ने कहा, महाराज मेरे बड़े भाई बाली ने मेरी धन-सम्पति और पत्नी छीनकर मुझे घर से बाहर निकाल दिया है। श्रीराम ने कहा सुग्रीव बाली पापी है। उससे युद्ध करो। छोटे भाई की पत्नी को अपना बनाना पाप है,इसलिए पापी को मारो।

जो मित्र के दुख से दुखी होता है वही सच्चा मित्र है। सुग्रीव और बाली के बीच युद्ध हुआ। राम सुग्रीव के पक्ष में थे अत: उन्होंने पीछे से छिपकर बाली को तीर मारा। तो बाली ने कहा- हे राम आप मर्यादा पुरूषोत्तम हैं। मैंने आपका कोई अपराध नहीं किया,फिर भी आपने मुझे तीर मारा? क्यों? धर्म की रक्षा करने के लिए आपने अवतार धारण किया है फिर भी आपने यह अधर्माचरण किया है। आपको सुग्रीव प्रिय लगता है, और मैं दुश्मन लगता हूँ। आपने व्याध की तरह से मुझ पर वार किया है। यह ठीक नहीं किया।

राम ने बाली से कहा, तुम्हें अपने दोष दिखाई नहीं देते, इसी कारण तू मुझे दोषी कह रहा है। बाली शास्त्रों में लिखा है कि जो भाभी ,बहन, पुत्रवधु और अपनी कन्या को एक समान नहीं देखता, वह पापी है और उसका वध करने पर कोई पाप नहीं लगता। तू ने अपने छोटे भाई सुग्रीव की पत्नी पर कुदृष्टि डाली है, इसी कारण मैंने तुझ पर वार किया है, इसी मे तेरा उद्धार है।

बाली ने अपने अपराध स्वीकार किए और बेटे अंगद से कहा, बेटे। राम के चरणों में प्रणाम करो। बाली ने ऐसा कहकर देह-त्याग किया और सद्गति को प्राप्त हुआ। सुग्रीव को किष्किंधा का राज्य देकर श्रीराम सीता की खोज में लग गए। राम के सामन जग-हितार्थी कोई नहीं हैं।

प्रेमी धर्म परायण सज्जनों! जो पराई औरत पर बुरी नजर रखता है, उसका पतन निश्चित है। इसलिए कभी भी पराई औरत को बुरी नजर से नहीं देखना चाहिए।

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