धर्म

सत्यार्थप्रकाश के अंश—51

रामलीला और रासमण्डल भी करवाते हैं। सीताराम राधाकृष्ण नाच रहे हैं। राजा और महन्त आदि उन के सेवक आनन्द में बैठे हैं। मन्दिर में सीता रामादि खड़े और पुजारी वा महन्त जी आसन अथवा गद्दी पर तकिया लगाये बैठते हैं। महागरमी में भी ताला लगा भीतर बन्ध कर देते हैं और आप सुन्दर वायु में पलंग बिछाकर सोते हैं। बहुत पुजारी अपने नारायण को डब्बी में बन्ध कर ऊपर से कपड़े बिछाकर सोते हैं। बहुत से पूजारी आपने नारायण को डब्बी में बन्ण कर ऊपर से कपड़े आदि बांध गले में लटका देते हैं जैसे कि वानरी अपने बच्चे को गले में लटका लेती है वैसे पूजारियों के गले में भी लटकते हैं। जब कोई मूर्ति को तोड़ता है तब हाय-हाय कर छाती पीट बकते हैं कि सीता राम जी राध कृष्ण जी और शिव पार्वती जी को दुष्टों ने तोड़ डाला। अब दूसरी मूर्ति मंगवा कर जो अच्छे शिल्पी ने संगमरमर की बनाई हो स्थापन कर पूजनी चाहिये।

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नारायण को घी के बिना भोग नहीं लगता। बहुत नहीं तो थोड़ा सा अवश्य भेज देना। इत्यादि बातें इन पर ठहराते हैं। और रासमण्डल वा रामलीला के अन्त में सीताराम वा राधाकृष्ण से भीख मंगवाते हैं। जहां मेला ठेला होता हैं वह छोकरे पर मुकुट धर कन्हैया बना मार्ग में बैठकर भीख मंगवाते हैं।
इत्यादि बातों को आप लोग विचार लिजिये कि कितने बड़े शोक की बात है। भला कहो तो सीतारामादि ऐसे दरिद्र और भिक्षुक थे? यह उन का उपहास और निन्दा नहीं तो क्या हैं? इस से बड़ी अपने माननीय पुरूषों की निन्दा होती है।

भला जिस समय ये विद्यमान थे उस समय सीता, रूक्मिणी,लक्ष्मी,और पार्वती को सडक़ पर वा किसी मकान में खड़ी कर पूजारी कहते कि आओ इन का दर्शन करो और कुछ भेंट पूजा धरो तो सीता रामादि इन मूर्खो के कहने से ऐसा काम कभी न करते और न करने देते। जो कोई उपहास उन का करता है उस विना दण्ड दिये कभी छोड़ते? हां जब उन्हों से दण्ड न पाया तो इन के कर्मो ने पूजारियों को बहुत सी मूर्तिविरोधियों से प्रसादी दिला दी और अब भी मिलती है और जब तक इस कुर्कम को न छोड़ेंगे तब तक मिलेगी।
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