धर्म

सत्यार्थप्रकाश के अंश—52

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जितने पाप हैं वे सब एकादशी के दिन अन्न में वसते हैं। इस पोप जी से पूछना चाहिये कि किस के पाप उस में बसते हैं? तेरे वा तेरे पिता आदि के? जो सब के पाप एकादशी में जा बसें तो एकादशी के दिन किसी को दु:ख न रहना चाहिये। ऐसा तो नहीं होता किन्तु उल्टा क्षुधा आदि से दु:ख होता है। दु:ख पाप का फल हैं। इस से भूखें मरना पाप है। इस का बड़ा माहात्म्य बनाया है जिस की कथा बांच के बहुत ठगे जाते हैं । उस में एक गाथा है कि- ब्राह्मलोक में एक वेश्या थी। उस ने कुछ अपराध किया। उस को शाप हुआ। तू पृथिवी पर गिर। उस ने स्तुति की कि मैं पुन: स्वर्ग में क्योंकर आ सकूँगी? उसने कहा जब कभी एकादशी के व्रत का फल तुझे कोई देगा तभी तू स्वर्ग में आ जायेगी। वह विमान सहित किसी नगर में गिर पड़ी। वहाँ राजा ने उस से पूछा कि तू कौन हैं? तब उसने सब वृत्तान्त सुनाया और कहा जो कोई मुझे एकादशी का फल अर्पण करे तो फिर भी स्वर्ग को जा सकती हूं। राजा ने नगर में खोज कराया। कोई भी एकादशी का व्रत करने वाला न मिला। किन्तु एक दिन किसी शूद्र स्त्री पुरूश की लड़ाई हुई थी। क्रोध में स्त्री दिन रात भुखी रही थी। दैवयोग से उस दिन एकादशी ही थी। उस ने कहा कि मैंने एकादशी जानकर तो नहीं की, अकस्मात् उस दिन भूखी रह गई थी। ऐसे राजा के भृत्यों से कहा। तब तो वे उस राजा के सामने ले आये। उस से राजा ने कहा कि तू इस विमान को छू। उसने छूआ तो उसी समय विमान ऊपर को उड़ गया। यह तो विना जाने एकादशी के व्रत का फल है। जो जानके करे तो उस के फल का क्या पारावार है।
वार रे आंख के अन्धे लोगों। जो यह बात सच्ची हो तो हम एक पान का बीड़ा जो कि स्वर्ग में नहीं होता भेजना चाहते हैं। सब एकादशी वाले अपना-अपना फल दे दो। जो एक पानबीड़ी ऊपर को चला जाएगा तो पुन: लाखों क्रोड़ो पान वहां भेंजेगे और हम भी एकादशी किया करेंगे और जो ऐसा न होगा तो तुम लोगों को इस भूखे मरनेरूप आपत्काल से बचावेंगे।
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Jeewan Aadhar Editor Desk