एक राजा रोज सुबह साधु-संतों को धन का दान देता था। एक दिन राजा के महल में प्रसिद्ध संत आए। राजा बहुत खुश हुआ, उसने संत से कहा कि गुरुदेव मैं आपकी कोई इच्छा पूरी करना चाहता हूं, आप बताएं मैं आपके लिए क्या कर सकता हूं?
संत ने कहा कि महाराज आप स्वयं अपनी इच्छा के अनुसार मुझे दान दे सकते हैं। आप जो दान देंगे, वह मैं स्वीकार करूंगा। राजा ने कहा कि गुरुजी मैं अपना पूरा राज्य आपको समर्पित करता हूं।
संत ने कहा कि राजन् ये राज्य आपका नहीं, बल्कि आपकी प्रजा का है। इसे आप दान में नहीं दे सकते हैं। राजा ने कहा कि ये महल ले लीजिए। संत ने जवाब दिया कि राजन् ये महल राज्य का राजकाज चलाने के लिए है। ये भी प्रजा का ही है।
इसके बाद ने बहुत सोचा और कहा कि गुरुदेव मैं अपना ये शरीर आपको समर्पित करता हूं। मैं आजीवन आपकी सेवा करूंगा। संत ने कहा कि राजन्, इस शरीर पर भी आपका हक नहीं है। ये शरीर आपकी पत्नी और आपके बच्चों का है। आप इसे दान में नहीं दे सकते हैं।
अब राजा परेशान हो गया कि संत को दान में क्या दूं? राजा ने संत से ही पूछा कि गुरुदेव आप ही बताएं मैं आपको क्या दूं? संत बोले कि राजन् आप मुझे अपना अहंकार दान करें। ये संसार माया का है। यहां कुछ भी हमारा नहीं है। फिर अहंकार किस चीज का। राजन् घमंड बहुत बड़ी बुराई है। इसका त्याग करें।
धर्मप्रेमी सुंदरसाथ जी,अहंकार एक ऐसी बुराई है, इसकी वजह से व्यक्ति को घर-परिवार और समाज में मान-सम्मान नहीं मिल पाता है। इसीलिए अहंकार से बचना चाहिए।