धर्म

परमहंस संत शिरोमणि स्वामी सदानंद जी महाराज के प्रवचनों से— 386

एक बार की बात है। एक भव्य राज्य में एक अहंकारी राजकुमारी रहती थी। उसकी बहुत सारी दासियां थी। सभी दासियां पूरी सतर्कता से के साथ अपने कार्य को करती थी। उसकी एक खास दासी थी। जो उसके बिस्तर को प्रतिदिन साफ सुथरा करती सजाती एवं उस पर इत्र लगती। साथ ही प्रतिदिन वह राजकुमारी के कमरे को सजाती।

एक दिन की बात है नगर में उत्सव का आयोजन होना था। सभी दासियों के पास बहुत कार्य थे। इस दासी के पास भी बहुत सारे कार्य थे। उसने सारे कार्य समाप्त कर, राजकुमारी के कक्षा की सजावट के लिए पहुंची। अत्यंत थकी दासी ने पूरी लगन के साथ राजकुमारी के कक्ष को सजाया। फिर इत्र भी उनके बिस्तर पर लगा दिया। अपनी सजावट देख दासी अति प्रसन्न हो रही थी। सोचा आज तो राजकुमारी अति प्रसन्न होंगी।

फिर उसके मन मे ख़्याल आया कि, “क्यों न मैं भी एक बार इस बिस्तर पर सर रख कर देखुं? की इस पर सो कर कैसा लगता है? दासी अति थकी हुई थी। साथ ही कमरे में आ रही ठंड़ी हवा ने मानो लोरी का काम किया हो। दासी को पता भी नही चला कि उसे कब नींद आ गई। उसके सोते ही राजकुमारी वहाँ आ गई।

राजकुमारी ने दासी को अपने बिस्तर पर सोता देख, अपना आपा खो दिया। राजकुमारी के अहंकार को ठेस पहुंची की ‘मेरे बिस्तर पर कोई दासी सो रही है’। वह चिल्ला उठी। “रे दासी! तेरी औकात की तू मेरे बिस्तर पर सोए? तुझ जैसी को मेरे कमरे में आने की अनुमति है, वही प्रयाप्त है और तूने मेरे बिस्तर पर अपने नीच देह को रखने का दुःसाहस किया। तुझे अभी के अभी यहीं 60 कोड़े मारे जाएं।”

दासी राजकुमारी के पैरों में गिर कर जीवन दान मांगने लगी। बोली, “राजकुमारी! मैं 60 कोड़े का दर्द नही सह पाऊंगी। मुझे माफ़ कर दीजिए। मुझसे गलती हुई है। परंतु, आप मुझे गलत समझ रही हैं। मेरा आपके बिस्तर पर सोने की कोई मंशा नही थी। मुझसे यह अपराध गलती से हुआ। मुझे माफ़ कर दीजिए।

परंतु, राजकुमारी के अहंकार ने इतने क्रोध को जन्म दे दिया था कि वह समझ ही नही पाई की वो किस अपराध के लिए क्या दंड देने जा रही है। दासी को कोड़े पड़ने लगे। वह कराहने लगी। कोड़े की पीड़ा सह नही पा रही थी। कष्ट में चिल्ला रही थी। जब लगभग उसे 30 कोड़े पड़ चुके थे, तब वह अचानक से हंसने लगी। उसकी हंसी सुनकर सब अचंभित रह गए।

राजकुमारी ने उसके हंसने का कारण पूछा। तब दासी ने कहा, “हे धर्मविमुख राजकुमारी! मुझे ख्याल आया कि मैं तो चंद क्षण भूल वश इस बिस्तर पर सोई तो ईश्वर ने मुझे 60 कोड़ों की सजा दी है। तुम तो इस पर जाने कितने दिनों से सो रही हो। मैंने तो गलती की कि राजकुमारी के बिस्तर पर मुझे झपकी आ गई। इसके लिए मुझे अपराध अनुकूल दंड भी मिलना चाहिए। परंतु यह दंड तो नीतिविरुद्ध और अहंकार अनुकूल हैं। तुमने अन्याय किया है। तुम्हारे इस अपराध का दंड जाने कैसा होगा?”

धर्मप्रेमी सुंदरसाथ जी, जब पद के अहंकार में कोई अन्याय करता है तो परमपिता परमात्मा समय आने पर ब्याज सहित उसका दंड देता है। समय की चाकी धामा पिसती है लेकिन पिसती काफी बारिक है। इसलिए पद के अहं में कभी अन्याय ना करें।

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