भगवान् श्रीकृष्ण समस्त प्राणियों के जीवनदाता एवं सर्वात्मा हैं। उन्होंने यदुवंश में अवतार लेकर जो -जो लीलाएँ कीं, उनका विस्तार से हम लोगों को श्रवण कराइये। परीक्षित के नम्र निवेदन से शुकदेव बड़े प्रसन्न हुए और कहा- कृष्ण कभी दिन में नहीं आते और राम आते हैं दिन में। कृष्ण तो है ही चोर, अत: अंधेरे में आते हैं। अब दशम-स्कन्ध आरम्भ हो रहा है, इसमें शुकदेवजी बहुत प्रसन्न होते हैं क्योंकि इसमें उनके इष्ट की कथा आती है।
श्रीमद्-भागवत सात दिनों में मुक्ति दिलानेवाला ग्रन्थ हैं। अनेक जन्मों तक साधना करने पर मिलने वाली दुर्लभ मुक्ति राजा परीक्षित को केवल सात दिनों में मिल गई थी। वास्तव में मुक्ति मन को मिलती है, आत्मा को नहीं। आत्मा तो नित्य मुक्त हैं। सुख-दु:ख मन को व्यापता हैं, आत्मा को नहीं। मन यदि सांसारिक विषयों का चिन्तन छोडक़र परमात्मा में लीन हो जाए तो उसकी मुक्ति निश्चित हो जाती है। कृष्ण-लीला में इतना आकर्षण होता है कि मन उसी में लीन हो जाता हैं।
धर्म प्रेमी बन्धुओं कृष्ण कथा मन को इतना लुभाती है कि जगत् को भुला देती हैं। संसार में हमें रहना है, परन्तु संसार हमारे में न रहे। परीक्षित ने सात दिनों में केवल कथामृत का ही पान किया। अन्न जल को ग्रहण नहीं किया। कृष्ण-कथा की यही महिमा हैं कि इसमें लीन हो जाता है और जगत को भूल जाता हैं।
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