धर्म

सत्यार्थप्रकाश के अंश—57

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परमेश्वर का नाम बड़े यश अर्थात् धर्मयुक्त कामों का करना है। जैसे ब्रह्म,परमेश्वर,ईश्वर, न्यायकारी, दयालु,सर्वशक्तिमान् आदि नाम परमेश्वर के गुण कर्म ,स्वभाव से हैं। जैसे ब्रह्म सब से बड़ा, परमेश्वर ईश्वरो का ईश्वर,ईश्वर सामथ्र्ययुक्त, न्यायकारी कभी अन्याय नहीं करता, दयालु सब पर कृपादृष्टि रखता, सर्वशक्तिमान् अपने साम्थर्य ही से सब जगत् की उत्पत्ति,स्थिति ,प्रलय करता,सहाय किसी का नहीं लेता। ब्रह्म विविध जगत् के पदार्थो का बनानेहारा,विष्णु सब में व्यापक होकर रक्षा करता, महादेव सब देवो का देव, रूद्र प्रलय करनेहारा, आदि नामों के अर्थो को अपने में धारण करे अर्थात् बड़े कामों से बड़ा हो, समर्थो में समर्थ हो, सामथ्र्यो को बढ़ाता जाय। अर्धम कभी न करे। सब पर दया रखे। सब प्रकार के साधनों का साम्थर्य करे। शिल्प विद्या से नाना प्रकार के पदार्थो को बनावे। सब संसार में अपने आत्मा तुल्य सुख-दुख समझे। सब की रक्षा करे। विद्वानों में विद्वान होवे। दुष्ट कर्म और दुष्ट कर्म करने वालों का प्रयत्न से दण्ड और सज्जनों की रक्षा करें। इस प्रकार परमेश्वर के नामों का अर्थ जानकर परमेश्वर के गुण, कर्म,स्वभाव के अनुकूल अपने गुण,कर्म स्वभाव को करते जाना ही परमेश्वर का नामस्मरण है।
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