धर्म

स्वामी राजदास : विचारधारा

आमतौर पर दो प्रकार की विचारधारा होती है- आध्यात्मिक व दुनियावी। दुनियावी विचारधारा वाला व्यक्ति हर वस्तु को सांसारिक दृष्टि से देखता है। ऐसे लोग मानते हैं कि सत्य वही है जिसे वे अपनी इंद्रियों से देख-महसूस कर सकते हैं। दूसरी ओर आध्यात्मिक सोच वाला व्यक्ति ऐसी शक्ति में विश्वास रखता है, जिसके निर्देशन में सारी सृष्टि चल रही है।

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दोनों ही विचारधाराओं व उनके स्वभाव में अंतर है। स्वभाव दो प्रकार के होते हैं- नित्य और नैमित्तिक। नित्य अर्थात आत्मा का मूल स्वभाव। नैमित्तिक अर्थात हमारा अनित्य स्वभाव। जैसे पानी का स्वभाव तरलता है। इसी प्रकार विश्व में सभी जीवों का मूल स्वभाव होता है। सभी प्राणी मूलत: सेवक स्वभाव के हैं। सभी में सच्चिदानंद की सेवा करने की नित्य भावना है।
सेवा करने की प्रवृत्ति दोनों विचारधाराओं के प्रणियों में है। सेवा दोनों ही कर रहे हैं, किंतु दोनों की चाह अलग-अलग है। श्रीमद्भगवद्गीता को लगभग सभी की मान्यता प्राप्त है। उसके अनुसार सभी प्राणी भगवान श्रीकृष्ण की शक्ति का अंश हैं। प्राणी वास्तव में आत्मा है, शरीर नहीं।

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आम भाषा में हम कहते हैं, ‘मेरा हाथ’, ‘मेरी आंख’, मेरे काम, मेरा शरीर, मेरा मन, इत्यादि। यह कोई नहीं कहता- मैं मन, मैं हाथ, इत्यादि। जब तक मनुष्य में चेतनता है, तब तक वह अगर कहीं जाता है तो मनुष्य की पहचान ही देता है। जब शरीर से चेतनता अर्थात आत्मा चली जाती है, तो मनुष्य को मृत घोषित कर देते हैं। मृत प्राणी को दफनाने पर या जलाने पर कोई सजा नहीं होती, किंतु जीवित प्राणी के साथ ऐसा करने पर सजा का विधान है।

हमारे समाज में चेतना से लैस जीवित प्राणी ही वोट डाल सकता है, चाहे वो अस्वस्थ ही क्यों न हो। आत्मा-रहित अर्थात मृत प्राणी वोट नहीं डाल सकता। इसका अर्थ हुआ कि वास्तव में हम सब में चेतनता है, जिसे शास्त्रों में आत्मा नाम दिया गया है।

हम सभी में सेवा की प्रवृत्ति पाई जाती है। यही आत्मा का स्वभाव है। इच्छा-क्रिया-अनुभूति की शक्ति सभी प्राणियों में पाई जाती है। शास्त्रों के अनुसार सभी प्राणियों में अणु रूप से सद्-चिद्-आनंद भी विद्यमान है। इसलिए अचेतन वस्तु के होने को चेतन वस्तु यानी कि प्राणी ही बताता है। अचेतन वस्तु कभी भी नहीं कह सकती कि वह अचेतन है। अचेतन वस्तु की अपनी कोई स्वतंत्रता नहीं होती।

चेतन वस्तु के होने से ही अचेतन वस्तु होती है। प्राणी वास्तव में चेतन है, अचेतन या जड़ नहीं। इसलिए चेतनता की जरूरत को पूरा करना जरूरी है। मन-बुद्धि की जरूरत, आत्मा की जरूरत के बाद आती है। मन, बुद्धि का उपयोग आत्मा के सुख के लिए करने में कोई नुकसान नहीं है। इसलिए बुद्धिमान व्यक्ति इसी विचारधारा को अपनाता है, और सबको एक नजर से ही देखता है।

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