धर्म

परमहंस संत शिरोमणि स्वामी सदानंद जी महाराज के प्रवचनों से—147

एक मंदिर था। उसमें सब लोग पगार पर काम करते थे। आरती वाला, पूजा कराने वाला आदमी,घंटा बजाने वाला भी पगार पर था…

घंटा बजाने वाला आदमी आरती के समय भाव के साथ इतना मशगुल हो जाता था कि होश में ही नहीं रहता था। घंटा बजाने वाला व्यक्ति भक्ति भाव से खुद का काम करता था। मंदिर में आने वाले सभी व्यक्ति भगवान के साथ साथ घंटा बजाने वाले व्यक्ति के भाव के भी दर्शन करते थे,उसकी भी वाह—वाह होती थी…

एक दिन मंदिर का ट्रस्ट बदल गया,और नए ट्रस्टी ने ऐसा आदेश जारी किया कि अपने मंदिर में काम करते सब लोग पढ़े-लिखे होना जरूरी है। जो पढ़े-लिखे नहीं है उन्हें निकाल दिया जाएगा।
उस घंटा बजाने वाले भाई को ट्रस्टी ने कहा कि ‘तुम्हारे आज तक का पगार ले लो अब से तुम नौकरी पर मत आना। उस घंटा बजाने वाले व्यक्ति ने कहा, ‘साहेब भले मैं पढ़ा लिखा नहीं हूं पर इस कार्य मैं मेरा भाव भगवान से जुड़ा हुआ है देखो…

ट्रस्टी ने कहा, ‘सुन लो, तुम पढ़े-लिखे नहीं हो, इसलिए तुम्हें रख नहीं रख पाएंगे…दूसरे दिन मंदिर में नये लोगों को रख लिया…परन्तु आरती में आए लोगों को अब पहले जैसा मजा नहीं आता। घंटा बजाने वाले व्यक्ति की सभी को कमी महसूस होती थी।

कुछ लोग मिलकर घंटा बजाने वाले व्यक्ति के घर गए, और विनती की तुम मंदिर आया करो।
उस भाई ने जवाब दिया, ‘मैं आऊंगा तो ट्रस्टी को लगेगा नौकरी लेने के लिए आया है इसलिए आ नहीं सकता हूं…’ लोगों ने एक उपाय बताया कि ‘मंदिर के बराबर सामने आपके लिए एक दुकान खोल देते हैं, वहां आपको बैठना है और आरती के समय बजाने आ जाना, फिर कोई नहीं कहेगा तुमको नौकरी की जरूरत है..’

उस भाई ने मंदिर के सामने दुकान शुरू की, वह इतनी चली कि एक दुकान से सात दुकान और सात दुकान से एक फैक्ट्री खोली। अब वो आदमी मर्सिडीज से घंटा बजाने आता था।

समय बीतता गया, यह बात पुरानी हो गई। मंदिर का ट्रस्टी फिर बदल गया। नए ट्रस्ट को नया मंदिर बनाने के लिए दान की जरूरत थी। मन्दिर के नए ट्रस्टी को विचार आया सबसे पहले उस फैक्ट्री के मालिक से बात करके देखते हैं..ट्रस्टी मालिक के पास गया सात लाख का खर्चा है। फैक्ट्री मालिक को बताया।

फैक्ट्री के मालिक ने कोई सवाल किए बिना एक खाली चेक ट्रस्टी के हाथ में दे दिया। और कहा चैक भर लो ट्रस्टी ने चैक भरकर उस फैक्ट्री मालिक को वापस दिया। फैक्ट्री मालिक ने चैक को देखा और उस ट्रस्टी को दे दिया।

ट्रस्टी ने चैक हाथ लिया और कहा सिग्नेचर तो बाकी है। मालिक ने कहा मुझे सिग्नेचर करना नहीं आता है, लाओ अंगूठा लगा देता हूं, ..वही चलेगा …’ यह सुनकर ट्रस्टी चौंक गया और कहा, “साहब तुमने अनपढ़ होकर भी इतनी तरक्की की, यदि पढ़े-लिखे होते तो कहां होते …!!!”

तो वह सेठ हंसते हुए बोला,’भाई, मैं पढ़ा-लिखा होता तो बस मंदिर में घंटा बजाते होता।’

धर्मप्रेमी सुंदरसाथ जी, कार्य कोई भी हो, परिस्थिति कैसी भी हो, तुम्हारी स्थिति, तुम्हारी भावनाओं पर निर्भर करती है। भावनाएं शुद्ध होगी तो ईश्वर और सुंदर भविष्य पक्का तुम्हारे साथ होगा। जो काम करो पूरे 100 प्रतिशत मोहब्बत और मेहनत के साथ करो। विपरीत स्थिति में किसी को दोष मत दो, हो सकता है उसमें कुछ अच्छा छुपा हो। ईश्वर ने आपके लिए कुछ अलग तय कर रखा हो।

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