फतेहाबाद

प्रशासन ने नहीं माने सीएम मनोहर लाल के आदेश, दिव्यांग मनोज कुमार हुआ दाने—दाने को मोहताज

फतेहाबाद (साहिल कुमार)
मुख्यमंत्री मनोहरलाल के आदेश अधिकारियों के लिए कोई विशेष मायने नहीं रखते। ऐसा ही एक मामला फतेहाबाद जिले के भूना कस्बे के जांडली कलां गांव से आया है। मामला मनोज कुमार का है। मनोज कुमार खेतों में मजदूरी करके अपने परिवार का पालन—पोषण करता था। लेकिन 7 फरवरी 2014 को खेत में काम करते समय करंट लग जाने से उसके दोनों हाथ कट गए। इसके बाद मनोज कुमार के परिवार पर आफत आ गई। घर में और कोई कमाने वाला नहीं होने के कारण घर की माली हालत काफी खराब हो गई।

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इस दौरान उसने सहायता के लिए फतेहाबाद जिला प्रशासन और तत्कालिन सरकार से कई बार गुहार लगाई लेकिन उसकी किसी ने नहीं सुनी। समय बीतता गया—लेकिन मनोज कुमार ने सरकार से आशा रखना जारी रखा। मनोज कुमार बताते है कि उन्होंने परिवार की मदद के लिए फतेहाबाद जिला उपायुक्त को 5 बार और सीएमओ मेंं 15 बार पत्राचार किया। जिला उपायुक्त ने एक बार 5100 रुपए की राशि दी। इसके बाद उपायुक्त कार्यालय ने कहा कि उनके पास इस प्रकार की मदद करने का कोई फंड नहीं है।

आशावान मनोज कुमार ने फतेहाबाद में सीएम मनोहर लाल के आगमन पर उनसे मुलाकात की और रोजगार उपलब्ध करवाने की गुहार लगाई। सीएम ने तुरंत जिला उपायुक्त को मनोज कुमार की पत्नी को डीसी रेट पर नौकरी पर रखने के आदेश दिए। सीएम के आदेश पर जिला प्रशासन के अधिकारियों ने मनोज कुमार को कार्यालय में आकर मिलने को कहा। सीएम के जाने के दो दिन बाद ही मनोज कुमार जब जिला प्रशासन के अधिकारियों के कार्यालय में गया तो उसे पहले आज—कल..आज—कल करके टरकाया गया, बाद में किसी भी प्रकार की नौकरी न होने की बात कहकर उसे भेज दिया गया।
वहीं समाज कल्याण विभाग ने आर्थिक मदद के लिए 6 महीने के समयावधि का हवाला देते हुए राजीव गांधी बीमा योजना का लाभ देने से भी इंकार कर दिया। कुल मिलाकर नियमों की जानकारी का अभाव, दिव्यांगता, कम पढ़ा—लिखा होना और अधिकारियों की अनदेखी के चलते मनोज कुमार के घर दो वक्त की रोटी का जुगाड़ होना भी मुश्किल हो गया है।

सीएम के आदेश को नियमों के हवाला देकर अधिकारियों के ठुकरा देने के बाद भी मनोज कुमार ने हार नहीं मानी है। मनोज कुमार ने अब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखकर मदद की गुहार लगाई है। मनोज कुमार पिलछे 4 सालों से परिवार के पालन—पोषण के लिए लगातार संघर्ष कर रहा है, अब देखना है कि सरकार उसकी मदद करती है या फिर एक लाचार व्यक्ति फिर सरकारी व्यवस्था के आगे घुटने टेकने को मजबूर होता है।
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