धर्म

परमहंस स्वामी सदानंद जी महाराज के प्रवचनों से—26

पुराने समय की बात है,एक गाँव में एक कसाई रहता था। वह कसाई बहुत गरीब था, इसीलिए उसका घर का गुजारा बड़ी मुश्किल से होता था। अपने परिवार का पेट पालने के लिए वह हर रोज़ दो–तीन बकरों को मार देता था। अंदर से बहुत कठोर बन चूका था, दया नाम की कोई चीज़ उसके अंदर बची ही नहीं थी।

एक दिन कसाई थका–हारा और परेशान घर आया उसकी पत्नी ने उससे पुछा—क्या बात है?? पहले तो आप कभी इतने उदास नहीं होते थे, आज ऐसा क्या हुआ ?
उसने अपनी पत्नी से कहा आज ऐसी घटना घटी, जिसने मुझे अंदर से तोड़ दिया। आज जो तीन बकरे मैंने खरीदे थे, उनमें से दो बकरे तो बिक गए,परन्तु तीसरा नहीं बिका। जब में घर वापिस आ आने लगा तो एक ग्राहक दुकान पर आया, उसने तीसरे वाले बकरे को खरीदने की मांग की। जैसे ही में उस बकरे को मारने लगा तो अचानक उस बकरे के अंदर से मुझे एक आवाज़ सुनाई दी।

हे! कसाई मुझे आज की रात मत मार में जानता हूँ कि तुम्हारी और मेरी दुश्मनी सदियों पुरानी चली आ रही है, आज की रात मुझे बख्श दे। मुझे सारी रात पीड़ा होगी मेरा रक्त सारी रात बहता रहेगा। बेशक मुझे सुबह होते ही मार देना।

बकरे की बातों को सुनकर मेरा दिल पसीज गया मेरी आखों से हंजू निकल रहे थे और मैंने उसी वक्त निश्चय कर लिया के आज के बाद इस काम को कभी नहीं करूंगा।
इसीलिए प्यारे सुंदरसाथ जी, जिस तरह स्वयं का दोष पता चलने पर कसाई भी अपना फैंसला बदल सकता है, इसी तरह हमें अपनी दोष का ढूंढ़ कर जिन्दगी में सुधार लाने के लिए अपने—आप को बदलना पड़ेगा।

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