पिछले 9 दिनों से पूरे देश में लगातार पेट्रोल के दाम बढ़ रहे हैं। हो सकता है कि आपको इस बात अहसास न हो, क्योंकि पेट्रोल और डीज़ल के दामों में सिर्फ कुछ पैसे की बढ़ोतरी हो रही है, लेकिन बार बार कुछ पैसे बढ़ाते बढ़ाते, ये वृद्धि कई रुपये हो चुकी है। लोग ये सवाल भी पूछ रहे हैं कि जब तक कर्नाटक में विधानसभा के चुनाव चल रहे थे, तब तक तेल के दाम नहीं बढ़ रहे थे, लेकिन चुनाव खत्म होते ही अचानक दाम बढ़ने लगे। सरकार अक्सर ये कहती है कि पेट्रोल के दाम तय करना तेल कंपनियों का काम है, और उन पर सरकार का कोई नियंत्रण नहीं है। लेकिन अगर तेल कंपनियां चुनाव के दौरान दाम नहीं बढ़ाने का फैसला कर सकती हैं, तो फिर बढ़े हुए दाम कम क्यों नहीं कर सकतीं?
कर्नाटक में 12 मई को वोटिंग थी और 15 मई को नतीजे आए। इससे पहले चुनाव प्रचार चल रहा था और नोट करने वाली बात ये है कि 24 अप्रैल के बाद पूरे देश में तेल कंपनियों ने दाम नहीं बढ़ाए। 24 अप्रैल को दिल्ली में एक लीटर पेट्रोल की कीमत 74 रुपये 63 पैसे थी। इसके बाद 19 दिनों तक पेट्रोल के दाम नहीं बढ़े और फिर 12 मई को कर्नाटक में वोटिंग होते ही 13 मई को पेट्रोल के दाम बढ़ गए। 13 मई से लगातार हर रोज़ पेट्रोल के दाम बढ़ रहे हैं। आज 23 मई को लगातार 10वें दिन भी पेट्रोल के दाम बढ़े और अब दिल्ली में एक लीटर पेट्रोल की कीमत 77 रुपये 17 पैसे हो चुकी है। ये अपने आप में रिकॉर्ड है। देश में पेट्रोल के दाम कभी भी इतने ज़्यादा नहीं रहे।
मई 2014 में जब केन्द्र में NDA की सरकार आई थी, तब अंतरराष्ट्रीय बाज़ार में कच्चे तेल की कीमत 107 अमेरिकी डॉलर्स यानी 7 हज़ार 280 रुपये प्रति बैरल थी और उस वक्त दिल्ली में एक लीटर पेट्रोल के दाम 71 रुपये 41 पैसे थे जबकि आज कच्चे तेल के दाम 86 अमेरिकी डॉलर्स यानी 5 हज़ार 871 रुपये प्रति बैरल है, लेकिन इसके बावजूद दिल्ली में पेट्रोल 76 रुपये 87 पैसे प्रति लीटर मिल रहा है।
इसी तरह से मई 2014 में दिल्ली में डीज़ल के दाम 56 रुपये 71 पैसे थे, जबकि आज डीज़ल के दाम 68 रुपये 8 पैसे प्रति लीटर हैं। दिल्ली में आज डीज़ल का जो दाम है, करीब 10 महीने पहले पेट्रोल का यही दाम था। 15 अगस्त 2017 को दिल्ली में एक लीटर पेट्रोल का दाम 68 रुपये 8 पैसे था, लेकिन अब आपको एक लीटर डीज़ल के लिए उतनी ही कीमत चुकानी होगी। यानी आपकी डीज़ल कार, खड़े खड़े पेट्रोल की कार में बदल गई और आप कुछ नहीं कर पाए।
सरकार को कच्चा तेल खरीदने के लिए कम पैसा खर्च करना पड़ रहा है, लेकिन जनता को आज भी उसकी बहुत ज्यादा कीमत चुकानी पड़ रही है। अंतरराष्ट्रीय बाज़ार में कच्चे तेल के दाम 2014 के मुकाबले भले ही कम हों, लेकिन इससे आम आदमी के जीवन में कोई बदलाव नहीं आया है और आज पूरा देश ये सवाल पूछ रहा है कि ऐसा क्यों है? इसकी वजह ये है कि पेट्रोलियम सेक्टर को पैसे के फलदार पेड़ की तरह इस्तेमाल किया गया है। असली समस्या भारत की पेट्रोल पॉलिसी में है। ये ऐसी पॉलिसी है जिससे आम आदमी को कोई फायदा नहीं होता जबकि सरकार का खज़ाना बढ़ता चला जाता है।
पेट्रोलियम सेक्टर से 2014-15 में सरकार को 3 लाख 32 हज़ार करोड़ रुपये का राजस्व मिलता था। जो 2015-16 में बढ़कर 4 लाख 19 हज़ार करोड़ रुपये हो गया। 2016-17 में 5 लाख 24 हज़ार करोड़ रुपये हुआ और 2017-18 के वित्त वर्ष में दिसंबर महीने तक पेट्रोलियम का राजस्व 3 लाख 82 हज़ार करोड़ रुपये हो चुका था। ऐसा नहीं है कि पेट्रोलियम पदार्थ सिर्फ केन्द्र सरकार का ही खज़ाना भर रहे हैं, बल्कि पेट्रोल और डीज़ल राज्य सरकारों के लिए भी सोने के अंडे देने वाली मुर्गी जैसे हैं।
वर्ष 2014-15 में पेट्रोलियम पदार्थों से देश के सभी का सारे राज्यों का राजस्व 1 लाख 37 हजार करोड़ रुपये था। जो 2016-17 में बढ़कर 1 लाख 66 हज़ार करोड़ रुपये हो चुका था। सवाल ये है कि सरकार ने पेट्रोल और डीज़ल से इतनी कमाई कैसे कर ली? अप्रैल 2014 में एक लीटर पेट्रोल पर 9 रुपये 48 पैसे की Excise Duty लगती थी, जो आज बढ़कर 19 रुपये 48 पैसे हो चुकी है। इसी तरह से अप्रैल 2014 में एक लीटर डीज़ल पर सिर्फ 3 रुपये 65 पैसे की Excise Duty लगती थी, जो आज बढ़कर 15 रुपये 33 पैसे की हो गई है।
अब इस बात पर ध्यान देना होगा कि पिछले 4 वर्षों में पेट्रोलियम कंपनियों की कमाई कैसे बढ़ गई है। Indian Oil Corporation के आंकड़ों को ध्यान से पढ़े। 2012-13 में IOC का मुनाफा सिर्फ 5 हज़ार 5 करोड़ रुपये था। जो पिछले 4 वर्षों में बढ़कर अब 19 हज़ार 106 करोड़ रुपये हो चुका है। यानी 4 वर्षों में IOC का मुनाफा 282% बढ़ चुका है। ऐसा नहीं है कि इस मुनाफे को बढ़ाने में तेल की खपत ज्यादा ज़िम्मेदार है। आपको जानकर हैरानी होगी कि इन 4 वर्षों में कंपनी की Sale यानी बिक्री 5% कम हुई है, लेकिन इसके बावजूद मुनाफा बढ़ रहा है।
आपको ये पता होना चाहिए, कि असल में सरकार को एक लीटर पेट्रोल किस दाम पर पड़ता है और आपको ये इतना महंगा क्यों मिल रहा है?
Indian Oil Corporation की तरफ से जारी आंकड़ों के मुताबिक दिल्ली में एक लीटर पेट्रोल का दाम, मूल रूप से सिर्फ 37 रुपये 43 पैसे प्रति लीटर होता है। इस पर केन्द्र सरकार 19 रुपये 48 पैसे की Excise Duty लगाती है। यानी एक लीटर पेट्रोल पर केन्द्र सरकार करीब 52% की कमाई करती है। इसके अलावा एक लीटर पेट्रोल पर दिल्ली सरकार 16 रुपये 34 पैसे का VAT लगाती है। यानी दिल्ली सरकार भी 44% की कमाई करती है और फिर डीलर को एक लीटर पेट्रोल पर 3 रुपये 62 पैसे का कमीशन भी मिलता है।
इसका मतलब ये हुआ कि एक लीटर पेट्रोल पर कुल मिलाकर 39 रुपये 44 पैसे। टैक्स और डीलर के कमीशन के तौर पर लिए जा रहे हैं। यानी आम आदमी एक लीटर पेट्रोल की जो कीमत दे रहा है उसमें सबसे बड़ा हिस्सा टैक्स है.. जबकि पेट्रोल की मूल कीमत इसके आधे से भी कम है। इसके लिए हमेशा य़े तर्क दिय़ा जाता है कि सरकार पेट्रोलियम कंपनियों का घाटा पूरा कर रही है लेकिन ये तर्क आम लोगों को पसंद नहीं आ रहा।
देश के 21 राज्यों में बीजेपी की सरकार है और ये राज्य सरकारें अगर चाहें तो टैक्स को कम करके, आम जनता को राहत दे सकती हैं। इसके अलावा हमारे देश में कई ऐसे मुख्यमंत्री हैं जो विपक्षी पार्टियों से हैं… और वो चाहें तो वो भी अपना राजस्व कम करके… तेल के दाम कम कर सकते हैं.. ममता बनर्जी.. अरविंद केजरीवाल.. और अमरिंदर सिंह सहित तमाम मुख्यमंत्रियों को इस मामले में अपनी इच्छाशक्ति का इस्तेमाल करना चाहिए।
अब सवाल ये है कि इसका इलाज क्या है? और इस सवाल का जवाब है— GST और इलेक्ट्रिक कार… कार की बात बाद में करेंगे.. लेकिन उससे पहले आपको GST का गणित समझा देते हैं। अगर पेट्रोल को GST के दायरे में ले आया जाए, तो इसके दाम कम हो सकते हैं। मुंबई में पेट्रोल 84 रुपये 70 पैसे प्रति लीटर मिल रहा है, जबकि दिल्ली में ये दाम करीब 76 रुपये 87 पैसे प्रति लीटर है। अगर पेट्रोल GST के तहत लाया जाएगा, तो 12% GST लगने के बाद दिल्ली में इसकी कीमत सिर्फ 41 रुपये 92 पैसे होगी, अगर इसमें डीलर का कमीशन भी शामिल कर दें तो एक लीटर पेट्रोल की कीमत सिर्फ 45 रुपये 54 पैसे होगी। सरकार ने ज़्यादातर वस्तुओं को GST के दायरे में शामिल कर दिया है, लेकिन पेट्रोलियम products अभी भी VAT सिस्टम के दायरे में आते हैं। GST के तहत वस्तुओं पर 5, 12, 18 और 28% की दर से टैक्स लगता है।
28% का टैक्स उन वस्तुओं या उत्पादों पर लगता है, जिन्हें सरकार Luxury मानती है लेकिन पेट्रोल और डीज़ल को Luxury नहीं माना जा सकता। इसीलिए अगर पेट्रोल और डीज़ल GST के तहत लाया जाएगा, तो इस पर 12% से ज्यादा टैक्स नहीं लगना चाहिए।
सरकार अगर पेट्रोल पर 18% GST भी लगाए और इसमें 3 रुपये 62 पैसे का डीलर कमीशन भी जोड़ा जाए, तो एक लीटर पेट्रोल 47 रुपये 79 पैसे का मिलेगा और अगर सरकार पेट्रोल को Luxury की वस्तु मान ले और इस पर अधिकतम 28% GST लगे, तो इस दर से भी पेट्रोल के दाम 51 रुपये 53 पैसे प्रति लीटर से ज्यादा नहीं होंगे। लेकिन पेट्रोलियम पदार्थों को GST के तहत लाना इतना आसान नहीं है। इसमें बहुत बड़ी राजनीति छिपी हुई है। GST ACT के तहत ये फैसला GST Counsil ही ले सकती है, जिसमें राज्यों का प्रतिनिधित्व ज्यादा है और ज्यादातर राज्य पेट्रोलियम पदार्थों को GST के तहत लाने का विरोध कर रहे हैं क्योंकि इससे राज्यों की अच्छी खासी कमाई होती है।
वैसे गौर से देखा जाए तो GST इस समस्या का एक Short Term समाधान है, लेकिन Permanent इलाज.. सिर्फ इलेक्ट्रिक वाहनों से ही मिल सकता है। पूरी दुनिया में वाहनों का भविष्य ‘Electric’ है और इससे पेट्रोल और डीज़ल की बढ़ती कीमतों का इलाज हो सकता है।
यहां आपको ये भी बता दें कि दुनिया में सबसे महंगा पेट्रोल Iceland में बिकता है – वहां इसका दाम 143 रुपये प्रति लीटर है जबकि Venezuela में पेट्रोल सबसे सस्ता है – वहां इसकी कीमत सिर्फ 70 पैसे प्रति लीटर है। दुनिया के दूसरे देशों की बात करें तो मलेशिया में एक लीटर पेट्रोल की कीमत करीब 37 रुपये, अफगानिस्तान में 50 रुपये, Russia में 47 रुपये, पाकिस्तान में 51 रुपये, अमेरिका में 56 रुपये, भूटान में 57 रुपये, श्रीलंका में 64 रुपये, नेपाल में 68 रुपये और बांग्लादेश में 71 रुपये है। हालांकि कुछ देश ऐसे भी हैं जहां एक लीटर पेट्रोल की कीमत भारत से ज़्यादा है। चीन में एक लीटर पेट्रोल की कीमत 81 रुपये, जापान में 88 रुपये, ब्रिटेन में 115 रुपये, फ्रांस में 124 रुपये और Hong Kong में 142 रुपये है।