पूरे उत्तर भारत में इन दिनों भयंकर गर्मी पड़ रही है। ज़्यादातर हिस्सों में तापमान 42 से 47 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच चुका है और मौसम विभाग के मुताबिक अगले 4 दिनों में ज़बरदस्त गर्मी पड़ने वाली है। लोग इस गर्मी के सामने बेबस हैं क्योंकि इसे कम करने फॉर्मूला किसी के पास नहीं है। हर कोई आपको ये बता रहा है कि गर्मी बहुत बढ़ गई है लेकिन कोई ये नहीं बता रहा है कि गर्मी बढ़ने की वजह क्या है ? और इसे होने वाली मौतों को कैसे कम किया जा सकता है? आपको जानकर हैरानी होगी कि भारत में गर्मी की वजह से हर साल बड़ी संख्या में लोगों की मौत हो जाती है लेकिन मौत के इन आकंड़ों को हमारा सिस्टम….. सरकारी फाइलों के नीचे दबा देता है। ऐसा इसलिए किया जाता है ताकि बढ़ते तापमान को कम करने की ज़िम्मेदारी से बचा जा सके।
वर्ष 1992 से 2016 के बीच…. Heat Wave यानी लू लगने की वजह से कम से कम 25 हज़ार 716 लोगों की मौत हो चुकी है। ये आधिकारिक आंकड़े हैं, गर्मी से मरने वालों की संख्या, इससे ज़्यादा भी हो सकती है। इन आकंड़ो को देखकर लगता है कि भारत में बढ़ती गर्मी को एक राष्ट्रीय आपदा घोषित कर देना चाहिए लेकिन हमारे सिस्टम ने अब तक इस बारे में कुछ सोचा ही नहीं है। राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन कानून और आपदा प्रबंधन की राष्ट्रीय नीति में Heat Wave को प्राकृतिक आपदा नहीं माना गया है। इसके पीछे की सबसे बड़ी वजह ये है कि बढ़ते तापमान को प्राकृतिक आपदा घोषित करने पर सिस्टम को कई योजनाएं बनानी पड़ेंगी। गर्मी को कम करने किए प्रभावी रणनीति तैयार करनी होगी। ऐसा करने पर सिस्टम की ज़िम्मेदारी बहुत बढ़ जाएगी जिसके लिए वो बिल्कुल तैयार नहीं है।
गर्मी की वजह से वर्ष 2015 में करीब 2 हज़ार ((2,040)) लोग और वर्ष 2016 में करीब 1 हज़ार ((1,111 )) लोगों की मौत हुई। NCRB के आंकड़े बताते हैं कि देश में Heat Wave तीसरी सबसे बड़ी आपदा है जो लोगों को मौत के मुंह में पहुंचा देती है। जबकि पिछले 15 वर्षों में आतंकवाद की वजह से करीब 9 हज़ार लोगों की मौत हुई है। इस हिसाब से देश में आतंकवाद से ज़्यादा बड़ी समस्या… बढ़ती हुई गर्मी है। आपने देखा होगा कि बढ़ते तापमान को लेकर दुनिया भर में चर्चाएं होती हैं, Global Warming पर गोष्ठियां और सेमिनार होते हैं, शक्तिशाली देशों के सम्मेलन होते हैं और उनमें बहुत बड़े बड़े दावे किए जाते हैं। इन गोष्ठियों का भाव ये होता है कि साथी हम संघर्ष करेंगे लेकिन इसके बाद सब अपने अपने घर चले जाते हैं और गर्मी को कम करने के दावे, गर्मा-गर्म चाय वाली चर्चा में खो जाते हैं।
भारत के लोग बढ़ती गर्मी के लिए सिर्फ़ सूरज को ज़िम्मेदार मानते है वो इस मामले में अपनी ज़िम्मेदारी से बचना पसंद करते हैं। शहरीकरण के चक्कर में पेड़ों की कटाई और इमारतों के निर्माण ने भारत के शहरों का तापमान बढ़ा दिया है। इस समस्या को Urban Heat Islands कहा जाता है। शहरों में ज़्यादातर इमारतों के निर्माण में कंक्रीट का इस्तेमाल होता है। ज़्यादातर छतें Asphalt से बनाई जाती है। कंक्रीट और Asphalt सूरज की गर्मी को सोख लेते हैं। इसके अलावा वाहनों का प्रदूषण और Air Conditioner का इस्तेमाल भी गर्मी को बढ़ाता है। जब रात होती है तो यही इमारतें गर्मी छोड़ने लगती हैं, जिससे शहरों का तापमान बढ़ जाता है।
सबसे बड़ा विरोधाभास ये है कि जिन Gadgets का इस्तेमाल गर्मी को कम करने के लिए होता है, वही Gadget गर्मी को बढ़ाने का काम करते हैं। पिछले 100 वर्षों में भारत का औसत तापमान 1.2 degree Celsius बढ़ चुका है। मौसम वैज्ञानिकों के मुताबिक अगर ये तापमान बढ़कर 3 degree Celsius हो गया तो उस दिन भारत में रहना बहुत मुश्किल हो जाएगा। अगर आपको भी अपने शहर के कुछ इलाकों में ज़्यादा गर्मी महसूस होती है तो आपको हमारा ये विश्लेषण ज़रूर देखना चाहिए। हो सकता है कि इस विश्लेषण को देखकर आपके अंदर गर्मी को कम करने की जागरूकता पैदा हो जाए। इस विश्लेषण में आपको गर्मी से खुद को बचाने के टिप्स भी मिलेंगे।