हिसार,
बारानी क्षेत्रों की ग्वार एक महत्त्वपूर्ण फसल है। खरीफ मौसम की यह फसल न केवल कम लागत में अधिक मुनाफा देती है, साथ ही इससे जमीन की उर्वरक शक्ति भी बढ़ती है। लेकिन ग्वार की इस फसल में जड़गलन (उखेड़ा) एक मुख्य बीमारी है, जो ग्वार के पैदावार को 25 से 40 प्रतिशत कम कर देती है। यह बात ग्वार विशेषज्ञ डॉ बीडी यादव ने कही। वे सोमवार को जिले के गांव मात्रश्याम में किसानों के एक शिविर को संबोधित कर रहे थे। शिविर में किसानों को ग्वार फसल के बारे में विस्तारपूर्वक जानकारी दी गई।
राष्ट्रीय खाद्य मिशन के जिला सलाहकार एवं रिटायर्ड कृषि वैज्ञानिक डॉ. आरएस ढुकिया ने बतौर मुख्यातिथि किसानों को सलाह दी कि बिजाई से पूर्व अपने खेत की मिट्टी व पानी अवष्य जांच करवाएं, ताकि जमीन की गुणवता को समय पर परखा जा सके। डॉ. यादव ने ग्वार की प्रमाणित व उन्नत किस्में एचजी 365, एचजी 563 व एचजी 2-20 बिजाई से पूर्व सुखा बीज उपचार करके ही बिजने की सलाह दी, वहीं डॉ. ढुकिया ने मूंग की उन्नत किस्म एमएच-421 बोने की सिफारिश की और उनकी कास्त के बारे में भी पूरी जानकारी दी। ग्वार विशेषज्ञ डॉ. यादव ने किसानों को ग्वार की खड़ी फसल में अनावश्यक रूप से किए जाने वाले खरपतवार नाशक दवा का प्रयोग भी न करने की सलाह दी। इसका असर ग्वार फसल की बढवार पर पड़ता और पत्ते 12 से 15 दिन के लिए पीले पड़ जाते हैं तथा इसका आगामी फसल सरसों की जमाव, बढ़वार व पैदावार पर विपरित असर पड़ता है। इसलिए किसानों को सलाह दी जाती है कि ऐसे खरपतवारनाशी दवाई का प्रयोग कदापि न करें।
डॉ. बीडी यादव ने खरपतवार से निजात पाने के लिए किसान ग्वार की बिजाई 25 से 30 दिन पर एक निराई गुड़ाई अवश्य करे, अगर इसके बाद जरूरत हो तो एक गुड़ाई, इसके 15 दिन बाद करें। इस अवसर पर मौजूद 48 किसानों को एक एकड़ की बीज उपचार की दवाई तथा इसके लिए एक जोड़ी दस्ताने निशुल्क दिए गये। इस प्रोग्राम को आयोजित करने में गांव के प्रगतिशील किसान शीशपाल ने अहम भूमिका निभाई। इस अवसर पर सुशील कुमार, जोगिन्द्र सिंह, कृष्ण कुमार, उमेद सिंह, सुभाष, भीमसिंह, लोकेश शर्मा आदि मौजूद थे।