धर्म

परमहंस स्वामी सदानंद जी महाराज के प्रवचनों से—35

किसी भी सफल इंसान के पीछे की कहानी बुलंद इरादों पर टिकी होती है। यदि आपके हौंसले चट्टान की तरह मजबूत है, सफलता आपको जरुर मिलेगी।
11 अप्रैल 2011 की घटना ने प्रसिद्ध वालीबाल ख़िलाड़ी अरुणिमा सिन्हा की जिन्दगी को बदल कर रख दिया। वो पद्दावती एक्सप्रेस से लखनऊ से दिल्ली आ रही थी । बरेली के पास पहुँचते ही कुछ लूटेरों ने उनकी सोने की चैन को छीनने का प्रयास किया । अरुणिमा सिन्हा ने उनका विरोध किया। लूट में असफल रहे लूटेरों ने अरुणिमा सिन्हा को चलती ट्रेन से नीचे गिरा दिया । इस घटना में अरुणिमा सिन्हा का एक पैर ट्रेन के पहिये के नीचे आ गया। उन्हें अपना बायां पैर खोना पड़ा । दिल्ली के आल इंडिया इंस्टिट्यूट मेडिकल एम्स में चार महीनों तक इलाज चला ।

उनके पैर में लोहे की छड़ डाली गई थी। ईलाज पूरा होने के बाद अब अरुणिमा सिन्हा के पास बस एक ही लक्ष्य था और वो लक्ष्य था दुनियां की सबसे उंची चोटी माउंट अवेरेस्ट पर फतह हासिल करना। हॉस्पिटल से छुट्टी मिलने के बाद ही अरुणिमा सिन्हा माउंट अवेरेस्ट पर चढ़ने वाली पहली महिला बिछेन्दरी पॉल से मिलने गई । बिछेन्दरी पॉल ने अरुणिमा सिन्हा को कुछ दिन आराम करने की सलाह दी, परन्तु अरुणिमा सिन्हा ने आराम करने से मना कर दिया। अरुणिमा सिन्हा ने बिछेन्दरी पॉल की निगरानी में रहकर कठिन अभ्यास किया, मानो अरुणिमा सिन्हा ने तो माउंट अवेरेस्ट पर जाने का एक लक्ष्य ही बना लिया था ।

53 दिनों के कठिन परिक्षण के बाद आखिरकार अरुणिमा सिन्हा ने 21 मई 2013 को माउंट अवेरेस्ट पर जीत हासिल कर ही डाली। इसके साथ ही वो माउंट अवेरेस्ट पर जाने वाली दुनियां की पहली विकलांग महिला बनी । इसके बाद अरुणिमा सिन्हा ने अपने कार्य को यहीं नहीं छोड़ा,उन्होंने तो दुनिया की सबसे उंची चोटिओं को फतह करने का लक्ष्य बनाया । इनमे से कुछ चोटिओं पर तो उन्होंने विजय हासिल कर ली है और अपने देश का झंडा लहरा चुकी हैं।

एक दर्द भरे हादसे ने अरुणिमा सिन्हा की जिन्दगी को कुछ समय के लिए पूरी तरह बदल दिया था। अगर वो चाहती तो हार मानकर अपनी सधारण जिन्दगी को जी सकती थी। परन्तु उन्हें पीछे हटना मंजूर नहीं था। उनके जोश और यत्नों ने फिर से उन्हें एक नई जिन्दगी जीने का मौका दिया ।

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Jeewan Aadhar Editor Desk

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