धर्म

परमहंस स्वामी सदानंद जी महाराज के प्रवचनों से—39

एक बार की बात है के दो मित्र एक साथ काम की तलाश में रेगिस्तान से गुजर रहे थे । रस्ते में चलते -चलते अचानक उनका किसी बात को लेकर आपस में झगड़ा हो गया। झगड़े में बात इतनी ज्यादा बढ़ गई के एक मित्र ने दुसरे मित्र को थप़्पड़ मार दिया। लेकिन जिस मित्र को थप्पड़ पड़ा था, उसे दुःख तो बहुत हुआ लेकिन उसने उसे कुछ नहीं कहा। लेकिन वह रुका और उसने रेत पर लिखा ” आज मेरे सबसे प्यारे मित्र ने मुझे थप्पड़ मारा। ”

इस के बाद दोनों मित्र आगे चलते रहे और चलते–चलते वह एक तलाब के पास पहुंचे । दोनों मित्रों ने नहाने का निश्चय किया। जिस मित्र को थप्पड़ पड़ा था वह नहाते–नहाते दल–दल में फंस गया और वह भय से चिल्लाने लगा, किन्तु उसके मित्र ने उसे दल -दल से बाहर निकाल लिया। जब वह मित्र बाहर आया और उसने एक पत्थर पर लिखा, आज मेरे सबसे प्यारे मित्र ने मेरी जान बचाई है।

जिस मित्र ने उसे थप्पड़ मारा था , और बाद में उसकी जान बचाई थी, उससे अब रहा न गया और उसने पूछा, जब मैंने तेरे थप्पड़ मारा था, तब तुमने रेत पर लिखा..जब मैंने तुम्हारी जान बचाई तो पत्थर पर लिखा।

इस पर दुसरे मित्र ने जबाब दिया, जब कोई दिल दुखाये तो हमें उसे रेत पर लिखना चाहिए, जिससे क्षमा रुपी वायु (हवा का तेज़ झोँका ) उसे शीघ्र ही उसे मिटा दें और जब कोई हमारे साथ अच्छा करे तो उसे पत्थर पर लिखना चाहिए जिससे कोई भी वायु उसे मिटा न सके।

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