हिसार

स्पोट्रस पॉलिसी के अंतर्गत दी गई इन्क्रीमेंट की रिकवरी में अफसरों की धांधलेबाजी उजागर

हिसार,
सूचना का अधिकार अधिनियम के अंतर्गत धारा 18 के तहत हरियाणा राज्य मुख्य सूचना आयोग के समक्ष डीएचबीवीएन की शिकायत करने वाले अधिवक्ता मनोज चंद्रवंशी ने बिजली विभाग की अनियमितता एवं धांधलेबाजी को उजागर करते हुए कहा है कि बिजली निगम अपने कर्मचारियों को प्रदर्शन के आधार पर स्पोट्र्स पॉलिसी के तहत इंक्रीमेंट प्रदान करता है। बहुत से कर्मचारियों को इस तरह की इंक्रीमेंट के लाभ पूर्व में मिलते रहे हैं परंतु ऑर्डर नंबर 40/जीएम/एडमिन दिनांक 23 मई 2014 के अंतर्गत बोर्ड ऑफ डायरेक्टर्स बैठक में एक निर्णय लेकर छह कर्मचारियों के नाम जारी किए गए तथा उनकी इंक्रीमेंट की रिकवरी करने का फैसला लिया गया। उक्त आदेश के तहत नामित 6 कर्मचारियों से भिन्न कई अन्य कर्मचारियों की इंक्रीमेंट तो विभाग ने मनमाने ढंग से रिकवर करने का काम किया है जबकि आरटीआई से प्राप्त सूचना से यह भी पता चला कि नामित सभी 6 कर्मचारियों में से कुछ कर्मचारियों की तो रिकवरी की गई जबकि कुछ कर्मचारियों का एक पैसा भी विभाग ने रिकवर नहीं किया।
एडवोकेट मनोज चंद्रवंशी ने बताया कि इस बाबत उन्होंने आरटीआई के अंतर्गत एक सूचना जनरल मैनेजर (एडमिन) से 24 अप्रैल 2018 को मांगी थी जिसको जीएम एडमिन ने सभी 11 सर्कल को सूचना प्रदान करने बाबत फारवर्ड कर दिया था। लगभग 4 महीने के लंबे अंतराल में कुछ आधी-अधूरी सूचना तो अवश्य प्राप्त हुई परंतु हिसार ऑप्रेशन सर्कल से आज तक उन्हें इस बाबत कोई सूचना नहीं मिली है। जिस पर अधिवक्ता ने प्रथम अपील अधिकारी के पास एक अपील 13 जुलाई 2018 को की थी। प्रथम अपील अधिकारी कम एसई ऑप्रेशन सर्कल ने 21 अगस्त 2018 को अपील डिस्पोज ऑफ करते हुए सर्कल के अंतर्गत तीनों डिवीजन (।, ।।, हांसी डिवीजन) को चार दिन के अंदर संबंधित सूचना प्रार्थी को प्रदान करने के आदेश दिए थे परंतु विभाग द्वारा प्रार्थी अधिवक्ता को आज तक विभाग वो सूचना उपलब्ध नहीं करवा पाया है। इसके खिलाफ अब प्रार्थी ने एक शिकायत सूचना का अधिकार अधिनियम 2005 की धारा 18 के अंतर्गत राज्य मुख्य सूचना आयोग चंडीगढ़ में 29 अगस्त 2018 को भी कर रखी है।
सूचना मांगने वाले अधिवक्ता का कहना है कि विभाग के अधिकारी कर्मचारियों के वेतन वृद्धि की रिकवरी करके माननीय सर्वोच्च न्यायालय के आदेशों की भी अवमानना कर रहे हैं। पंजाब राज्य अन्य बनाम रफीक मसीह (सिविल अपील नंबर 11527 ऑफ 2015) के मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने यह साफ तौर पर निर्देशित किया है कि तृतीय व चतुर्थ श्रेणी के कर्मचारियों की इंक्रीमेंट से किसी भी प्रकार की रिकवरी नहीं की जा सकती परंतु फिर भी विभाग ने सर्वोच्च न्यायालय के विरुद्ध जाकर ये आदेश जारी कर दिए जो एक अपराध है। दूसरा जो रिकवरी की गई है वो मनमाने ढंग से व बिना किसी निश्चित पैमाने से की गई है। कुछ अधिकारियों ने दुर्भावनापूर्वक कई कर्मचारियों की रिकवरी तो 2009 से कर ली तथा किसी की 2014 से की है। किसी कर्मचारी से 43000 रुपये की राशि रिकवर की गई है तो किसी कर्मचारी से 24000 रुपये की गई है जबकि हैड ऑफिस से संंबंध रखने वाले कर्मचारियों का एक पैसा भी विभाग के द्वारा रिकवर नहीं किया गया है क्योंकि इस रिकवरी के दायरे में कई बड़े अधिकारी भी आते हैं। एक्सिएन डिविजन-।। के अंतर्गत मिली आरटीआई की सूचना से पता चला है कि डिविजन के अंतर्गत चार कर्मचारियों के नाम विभाग ने उजागर किए हैं जिनको इंक्रीमेंट मिली थी जबकि सूचना में यह भी पता चला कि रिकवरी केवल एक कर्मचारी की गई है।
अधिवक्ता मनोज चंद्रवंशी ने बताया कि ऐसे घपलों और अनियमितताओं का पूरा चिट्ठा उन्होंने तैयार कर लिया है तथा अब इस सारी धांधलेबाजी के दस्तावेज मुख्यमंत्री के समक्ष प्रस्तुत करने की तैयारी उन्होंने कर ली है। सर्वोच्च न्यायालय की अवमानना का मुकदमा भी विभाग के अधिकारियों के विरुद्ध डाला जाएगा व दूध का दूध, पानी का पानी करने में कोई कसर नहीं छोड़ी जाएगी। इस मामले में जिन भी अधिकारियों की संलिप्तता पाई जाएगी उन पर कानूनी कार्यवाही भी अधिवक्ता द्वारा करने की बात कही गई है।

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