हिसार

सरकार की उदासीनता के कारण फ्यूचर मेकर के करोड़ों डिस्ट्रीब्यूटर बर्बादी की राह पर

(हिसार टूडे न्यूज पेपर से)
फ्यूचर मेकर के सीएमडी राधेश्याम की गिरफ्तारी के बाद हर अखबार में उनकी खबर सुर्ख़ियो में बनी रही। सभी पत्रकार इस खोजबीन में लग गए कि इस मामले में ऐसा क्या मिल जाए कि उनकी खबर दूसरे अखबार के पत्रकारों से भिन्न नजर आए। एक्सक्लूसिव की मारामारी….. एक्सक्लूसिव के चक्कर में कोई पहुंच गया फ्यूचर मेकर के दफ्तर तो कोई पहुंच गया तेलंगाना, मगर फ्यूचर मेकर के डिस्ट्रीब्यूटर इस इंतज़ार में रहे कि शायद कोई उनके पास आता और उनकी भी बात सुनता। खैर किसी से जोर जबरदस्ती तो नहीं कर सकते, मगर हां हकीकत तो यह है कि अगर गलती है, तो भुगतना ही पड़ेगा।

हर दिन की खबरों ने जहां फ्यूचर मेकर के डिस्ट्रीब्यूटरो में अफरातफरी का माहौल खड़ा कर दिया। इन खबरों के अखबारों में प्रकाशन के बाद कोई मोर्चा निकालने लगा तो किसी ने धोखाधड़ी की शिकायत दर्ज करवाई। सवाल यह उठ खड़ा होता है कि जब तक फ्यूचर मेकर की ऐसी खबर सुर्खियों में नहीं थी , तब तक किसी डिस्ट्रीब्यूटर और अखबारों को इसमें कोई खामी नहीं दिखी। मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर ने फ्यूचर मेकर चैरिटेबल ट्रस्ट को पुरस्कार देने के समय नहीं पूछा कि क्या इस कंपनी के पास लाइसेंस है या यह कंपनी नियमों का पालन कर रही है। सब खामोश थे, अचानक इन खबरों के समाचार पत्रों में छपाई के बाद लोगों की, नेताओं की और प्रशासन की बुद्धि खुली कि कुछ तो गलत हैं। क्या यह लोगों को बाद में समझ आया या समाचार पत्रों में एकतरफा खबरों के बाद लोगों को समझ आया। इस सवाल का जवाब समझदार भली भांति जानते है।

किसने क्या कहा ? क्या छापा ? सवाल यह नहीं, सवाल यह है कि सरकार अब तक कहां थी। क्या यह गलती सरकार की नहीं कि जिस कंपनी पर अभी जो आरोप लग रहे है, वो कहीं न कहीं उनकी कमियों और सरकार की निष्क्रियता को दर्शाता है। आज डिस्ट्रीब्यूटर यह सवाल उठा रहे हैं कि उनके साथ सरकार ने बहुत ज्यादती की है, क्योंकि अगर करोडों के लोन डकारने वाले के पैसे हमदर्दी दिखाकर सरकार माफ़ कर सकती है, ऐसे में जो (फ्यूचर मेकर) करोडों को रोजगार दे रहे हैं, उस पर कार्यवाई से पूर्व सरकार ने हमदर्दी क्यों नहीं दिखाई? सरकार और पुलिस प्रशासन को क्यों नहीं लगा कि डायरेक्ट सेलिंग बिज़नेस में जो कंपनी देश में अव्वल पायदान पर है, जिस कंपनी से लाखों नहीं बल्कि करोड़ों लोग जुड़े है, उन पर कार्यवाई से पूर्व उन्हें अपनी बाजू साबित करने का मौक़ा दिया जाना चाहिए था।

आखिर इस कंपनी के डिस्ट्रीब्यूटर का क्या दोष है? क्या पुलिस या सरकार ने कंपनी से पूछा कि क्या उसके पास इतने फंड है कि वह अपने सभी डिस्ट्रीब्यूटरो को उनके पैसे का भुगतान करने में सक्षम है। अगर ऐसा होता तो आज सडकों में रात दिन गुजारने वाले फ्यूचर मेकर के सदस्यों को रोड पर रात नहीं गुजारनी पड़ती, अपने परिवार को छोड़ दूरदराज से आये डिस्ट्रीब्यूटर को इतना चक्कर काट अपना दिन नहीं ख़राब करना पड़ता। डिस्ट्रीब्यूटर की यह मांग थी कि सरकार या पुलिस प्रशासन पहले कंपनी को नोटिस देते, उनका पक्ष जानते, फिर संतुष्ट न होने पर उन पर कार्यवाही करती, मगर सरकार ने ऐसा न कर करोडों डिस्ट्रीब्यूटरो के साथ धोखा किया है, याद है PACL घोटाला, जिसमें केन्द्र सरकार ने पीएसीएल कल्पतरू सहारा पिनकाॅन को चिटफंड बताकर बंद करा दिया, मगर ऐसा कदम उठाते हुए सरकार ने यह नहीं सोचा कि इसमें निवेशकों का क्या होगा।

दरअसल ये मामला वर्ष 2011 में इंदरगंज पुलिस में आया जब पीएसीएल कंपनी के खिलाफ केस दर्ज किया था। निवेशकों ने थाने में शिकायत दर्ज कराई थी कि पीएसीएल चिटफंड कंपनी ने धन दोगुना करने का भरोसा दिया था, लेकिन जब पैसे लेने पहुंचे तो उन्होंने देने से मना कर दिया। धर्मेंद्र राजपूत ने आवेदन दिया था कि उसने 25-25 हजार की चार किस्तें पीएसीएल कंपनी में जमा की थीं, 6 महीने में धन को दोगुना करने का भरोसा दिया था। जब किस्त पूरी जमा हो गई और छह महीने बीत गए तो वह पैसे लेने कंपनी के पास गया, लेकिन कंपनी ने उसे देने से मना कर दिया। इस शिकायत के बाद कंपनी के साथ सभी निवेशकों पर कार्यवाई की गाज गिरी, मगर यह कार्यवाई करने के पूर्व सरकार ने यह नहीं सोचा की लाखों निवेशकों का क्या होगा।

इतना ही नहीं सहारा के मामले में भी कुछ ऐसी ही शिकायत वहां के निवेशकों की भी रही कि आखिर सरकार के सामने यह सब चल रहा है, लेकिन सरकार सालों तक चुप क्यों बैठती है। इसमें कहीं न कहीं सरकार की घोर लापरवाही दर्शाती है कि भारत में सब कुछ रामभरोसे चल रहा है। हैरत है कि शिकायत के बाद सरकार अपनी सोई नींद से जागती है, जबकि सरकार को चाहिए कि जब ऐसी कंपनी रजिस्टर करवाती है तो समय-समय पर उन कंपनियों की स्टेटस रिपोर्ट मंगवाई जाए। एक ख़ास समिति इसका खुद मुआयना करें ताकि करोडों जनता अखबारों की खबरों को पढ़कर असमंजस में आकर आत्महत्या को मजबूर न हो जाए।

फ्यूचर मेकर के डिस्ट्रीब्यूटर का आरोप है कि सरकार ने उनके साथ ज्यादती की, उन्होंने राधेश्याम को अपनी बेगुनाही साबित करने और गलतियों को सुधारने का मौका नहीं दिया। अगर वह उन्हें मौक़ा देती तो शायद आज यह नौबत न आती।

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