नई दिल्ली,
गुरुवार को व्यभिचार कानून पर सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला आया। पांच सदस्यों की संविधान पीठ ने व्यभिचार को अपराध की श्रेणी से बाहर कर दिया। अदालत ने 150 साल पुराने इस कानून को महिला अधिकारों के खिलाफ बताते हुए असंवैधानिक घोषित कर दिया। कोर्ट ने कहा कि पत्नी का मालिक नहीं है पति।
ये है फैसले की अहम बातें
– प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा ने कहा कि संविधान की खूबसूरती यही है कि उसमें ‘मैं, मेरा और तुम’ सभी शामिल हैं।
-समानता संविधान का शासी मानदंड है।
-महिलाओं के साथ असमान व्यवहार करने वाला कोई भी प्रावधान संवैधानिक नहीं है।
-हम विवाह के खिलाफ अपराध के मामले में दंड का प्रावधान करने वाली भारतीय दंड संहिता की धारा 497 और सीआरपीसी की धारा 198 को असंवैधानिक घोषित करते हैं-सीजेआई और न्यायमूर्ति खानविलकर
-सीजेआई ने कहा कि अब यह कहने का समय आ गया है कि पति महिला का मालिक नहीं होता है।
-व्यभिचार तलाक का आधार हो सकता है और दीवानी मामले में इसका समाधान है।
-मूलभूत अधिकारों में महिलाओं का अधिकार भी शामिल होना चाहिए। किसी पवित्र समाज में व्यक्तिगत मर्यादा महत्वपूर्ण है। सिस्टम महिलाओं के साथ असमानता से बर्ताव नहीं कर सकता। महिलाओं को समाज के इच्छानुसार सोचने के लिए नहीं कहा जा सकता।
-व्यभिचार को तब तक अपराध नहीं मान सकते जबतक उसमें धारा 306 (खुदकुशी के लिए उकसाना) का अपराध न जुड़े।