शास्त्रों में मां दुर्गा के नौ रूपों का बखान किया गया है। देवी के इन स्वरूपों की पूजा नवरात्रों में विशेष रूप से की जाती है। नवरात्रों के नौ दिन लगातार माता पूजन चलता है। तो आइए जानें देवी के इस पावन पर्व पर कैसे करें पूजन की तैयारियां…
देवी पूजन की विशेष सामग्री:
माता की मूर्ति या तस्वीर की स्थापना के लिए चौकी, मां दुर्गा की तस्वीर या मूर्ति, चौकी पर बिछाने के लिए लाल या पीला कपड़ा, मां पर चढ़ाने के लिए लाल चुनरी या साड़ी, नौ दिन पाठ के लिए ‘दुर्गासप्तशती’ किताब, कलश, ताजा आम के पत्ते धुले हुए, फूल माला या फूल, एक जटा वाला नारियल, पान, सुपारी, इलायची, लौंग, कपूर, रोली, सिंदूर, मौली (कलावा) और चावल।
अखंड ज्योति जलाने के लिए:
पीतल या मिट्टी का साफ दीपक, घी, लंबी बत्ती के लिए रुई या बत्ती, दीपक पर लगाने के लिए रोली या सिंदूर, घी में डालने और दीपक के नीचे रखने के लिए चावल।
नौ दिन के लिए हवन सामग्री:
हवन कुंड.आम की लकड़ी, हवन कुंड पर लगाने के लिए रोली या सिंदूर, काले तिल, चावल, जौ (जवा), धूप, चीनी, पांच मेवा, घी, लोबान, गुग्ल, लौंग का जौड़ा, कमल गट्टा, सुपारी, कपूर, हवन में चढ़ाने के लिए प्रसाद की मिठाई और नवमी को हलवा-पूरी और आचमन के लिए शुद्ध जल।
कलश स्थापना के लिए:
एक कलश, कलश और नारियल में बांधने के लिए मौली (कलावा), 5, 7 या 11 आम के पत्ते धुले हुए, कलश पर स्वास्तिक बनाने के लिए रोली, कलश में भरने के लिए शुद्ध जल और गंगा जल, जल में डालने के लिए केसर और जायफल, जल में डालने के लिए सिक्का और कलश के नीचे रखने चावल या गेहूं।
जवारे बोने के लिए:
मिट्टी का बर्तन, साफ मिट्टी (बगीचे की या गड्डा खोदकर मिट्टी लाएं), जवारे बोने के लिए जौ या गेहूं, मिट्टी पर छिड़कने के लिए साफ जल और मिट्टी के बर्तन पर बांधने के लिए मौली (कलावा)।
माता के श्रृंगार के लिए:
लाल चुनरी, चूड़ी, बिछिया, इत्र, सिंदूर, महावर, बिंद्दी, मेहंदी, काजल, चोटी, गले के लिए माला या मंगलसूत्र, पायल, नेलपॉलिश, लिपस्टिक (लाली), चोटी में लगाने वाला रिबन और कान की बाली।
देवी पूजन में इन बातों का रखें ध्यान:
तुलसी पत्ती न चढ़ाएं, माता की तस्वीर या मूर्ति में शेर दहाड़ता हुआ नहीं होना चाहिए। देवी पर दूर्वा नहीं चढ़ाएं, जवारे बोए हैं और अखंड ज्योति जलाई है तो घर खाली न छोड़ें, मूर्ति या तस्वीर के बाएं तरफ दीपक रखें। मूर्ति या तस्वीर के दायें तरफ जवारे बोएं, आसन पर बैठकर ही पूजा करें। ध्यान रहे जूट या ऊन का आसन होना चाहिए।