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राफेल सौदा : सरकार की नहीं रक्षा अधिकारियों की सुनेगी कोर्ट

नई दिल्ली,
राफेल सौदे को लेकर सुप्रीम कोर्ट में दाखिल याचिकाओं पर आज अहम सुनवाई हो रही है। अदालत राफेल सौदे की कीमत और उसके फायदों की जांच करेगी। केंद्र ने पिछली सुनवाई में 36 राफेल लड़ाकू विमानों की कीमत और उसके फायदे के बारे में कोर्ट को सीलबंद दो लिफाफों में रिपोर्ट सौंपी थी।

चीफ जस्टिस रंजन गोगोई, जस्टिस एस के कौल और जस्टिस के एम जोसेफ की पीठ इस मामले में अहम सुनवाई कर रही है। जिसमें याचिकाकर्ता भी दलीलें देंगे। याचिकाकर्ताओं ने सौदे की अदालत की निगरानी में जांच की मांग की है।

अटॉर्नी जनरल ने सुप्रीम कोर्ट में कहा है कि हमने राफेल पर दाम की जानकारी साझा कर दी है, लेकिन इसको रिव्यू करना एक्सपर्ट का काम है। इसको न्यायपालिका रिव्यू नहीं कर सकती है।

CJI बोले- एयरफोर्स के अधिकारी को बुलाएं
सुनवाई के दौरान चीफ जस्टिस ने कहा है कि वह रक्षा मंत्रालय का पक्ष नहीं सुनना चाहते हैं। वह चाहते हैं कि कोई एयरफोर्स का अधिकारी आए और अपनी जरूरतों को बताया है। अटॉर्नी जनरल ने CJI को कहा कि कुछ ही मिनटों में एयरफोर्स का अधिकारी आ रहा है।

जस्टिस जोसेफ ने पूछा कि क्या नए विमान जो आएंगे वह पुराने विमान जैसे ही हैं। जिस पर सरकार ने कहा है कि नए विमानों में काफी कुछ नया होगा। CJI ने पूछा कि नए विमान में क्या होगा, क्या पब्लिक को बताया गया है तो सरकार ने इससे इनकार किया।

जस्टिस जोसेफ ने पूछा कि जब Request for proposal (RFP) अप्रैल 2015 में वापस ले लिया गया था और नया RFP जारी नहीं हुआ तो डील कैसे साइन हुई। चीफ जस्टिस ने कहा कि क्या डील के लिए RFP जरूरी होता है, जिस पर AG ने जवाब दिया कि ऐसा जरूरी नहीं है।

प्रशांत भूषण ने लगाए कई बड़े आरोप
सुप्रीम कोर्ट में वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण ने कहा कि पहले इस डील में 108 विमान भारत में बनाने की बात की जा रही थी। 25 मार्च 2015 को दसॉल्ट और HAL में करार हुआ और दोनों ने कहा कि 95 फीसदी बात हो गई है लेकिन 15 दिन बाद ही प्रधानमंत्री के दौरे के दौरान नई डील सामने आई जिसमें 36 राफेल विमान पक्के हुए और मेक इन इंडिया को किनारे कर दिया गया।

इस डील के बारे में रक्षामंत्रालय को भी पता नहीं था, एक झटके में विमान 108 से 36 हो गए और ऑफसेट रिलायंस को दे दिया गया। उन्होंने कहा कि सरकार कह रही है कि उन्हें ऑफसेट पार्टनर का पता नहीं है लेकिन प्रोसेस में साफ है कि बिना रक्षा मंत्री की अनुमति के ऑफसैट तय नहीं हो सकता है। ऑफसेट बदलने के लिए सरकार ने नियमों को बदला और तुरंत उसे लागू किया।

भूषण ने कहा कि सरकार पहले ही दो बार देश की सुरक्षा को ताक पर रख दिया है, क्योंकि वह दो बार संसद में राफेल के दाम बता चुकी है। सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने प्रशांत भूषण को कहा कि कोर्ट में जितना जरूरी हो, उतना ही बोलें। प्रशांत भूषण ने आरोप लगाया कि दसॉल्ट ने रिलायंस ग्रुप के 240 करोड़ रुपये के शेयर खरीदे।

प्रशांत भूषण ने कहा कि इस डील के लिए रिलायंस को ही क्यों चुना गया। उसके पास तो जमीन भी नहीं थी, रिलायंस फॉर्मूला का ही पार्ट थी। 17 दिन के अंदर ही रिलायंस को जमीन, डिफेंस मैन्यूफेक्चरिंग का लाइसेंस दिया गया।

अरुण शौरी ने भी सरकार को घेरा
सुप्रीम कोर्ट में अरुण शौरी ने कहा कि ऑफसेट की बातों को बाद में बदला गया, दसॉल्ट ने रिलायंस को चुना। उन्होंने आरोप लगाया कि दसॉल्ट भी इस समय फाइनेंशियल क्राइसेस से जूझ रहा है, यही कारण है कि उन्होंने सरकार की हर बात मानी और रिलायंस के साथ करार किया। इस डील से दसॉल्ट को भी फायदा हुआ। अरुण शौरी बोले कि राफेल डील का फैसला प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बिना रक्षा मंत्री और रक्षा मंत्रालय की सलाह के किया है।

अन्य याचिकाकर्ता ने भी सरकार को घेरा
आम आदमी पार्टी के नेता संजय सिंह के वकील ने कहा कि सरकार कीमत का खुलासा नहीं किया। हमने कुछ दस्तावेज दायर किए जो दिखाते हैं कि सरकार ने संसद से पहले दो बार कीमत का खुलासा किया था। विभिन्न आंकड़े दिए गए। सांसदों ने संसद में सवाल पूछा था। 18 मार्च 2016 रक्षा मंत्रालय द्वारा दिए गए उत्तर में आईजीए ने सितंबर 2016 को हस्ताक्षर किए। हथियार, उपकरण, सेवा और रखरखाव के साथ राफेल विमान की कीमत 670 करोड़ है।

राफेल की सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता के वकील विनीत ढांडा ने कहा कि प्रधानमंत्री कैसे बिना किसी डील के फिक्स होने से पहले इस पर बयानबाजी कर सकते हैं। उन्होंने कहा कि पहले 36 एयरक्राफ्ट की डील अनाउंस की गई थी, उसके बाद बात हुई। ये जवाब एफिडेविट में देना चाहिए।

याचिकाकर्ता ने सुप्रीम कोर्ट में कहा है कि फैसला लेते वक्त काफी गड़बड़ी हुई है। सरकार ने अपने दस्तावेज में कहा है कि फ्रांस-भारत में इसको लेकर बातचीत मई 2015 में शुरू हुई, जबकि अप्रैल 2015 में प्रधानमंत्री ने डील का ऐलान कर दिया था।

उन्होंने आरोप लगाया कि राफेल विमान खरीदते समय कई सारी कंडिशन्स को फॉलो नहीं किया गया। उन्होंने कहा कि कानून मंत्रालय ने इस डील से जुड़े काफी मुद्दों पर शंका व्यक्त की थी। कानून मंत्रालय ने कहा था कि फ्रांस सरकार ने इसको लेकर कोई गारंटी नहीं दी थी। हम इतना पैसा दे रहे हैं, फिर भी वहां की सरकार कोई गारंटी नहीं दे रही है।

सरकार ने अपने दस्तावेज में खरीद की प्रक्रिया, ऑफसेट और दाम के बारे में नहीं बताया है। अप्रैल 2015 में नई डील साइन की गई लेकिन उसकी प्रक्रिया नहीं बताई गई। दस्तावेज में ये भी नहीं बताया गया है कि क्या रक्षा कमेटी से परमिशन 36 एयरक्राफ्ट के लिए ली गई थी या फिर पहले की ही परमिशन थी। उन्होंने कहा कि कागजात बता रहे हैं कि विमान में वही चीजें हैं जो पहले थीं, तो ये कैसे कह रहे हैं कि ये डील बढ़िया है।

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