धर्म

नवरात्र पर कलश व घट की स्थापना की विधि व मुहूर्त जानें

नवरात्र में कलश स्थापना करना बेहद शुभ माना जाता है। कलश की स्थापना शुभ मुहूर्त में करनी चाहिए। इसके बाद घट स्थापना विधि के द्वारा करनी फलदायक मानी जाती है।

कलश स्थापना का शुभ मुहूर्त
रेवती नक्षत्र जो कि पंचक नक्षत्रों में से एक है, कल सुबह 07 बजकर 22 मिनट तक रहेगा, लेकिन वैधृति योग रात 09 बजकर 47 मिनट तक चलेगा। वैधृति योग में घट स्थापना वर्जित है। प्रतिपदा तिथि, उदया तिथि 6 अप्रैल से ही मान्य है। अत: चैत्र शुक्ल पक्ष प्रतिपदा कल शनिवार 6 अप्रैल, 2019 को पूरे दिन मान्य रहेगी और वैधृति योग रात्रि 09 बजकर 41 मिनट तक रहेगा। अस्तु, पूरे दिन घट स्थापना का मुहर्त नहीं है, लेकिन नित्य ही सूर्य जब अपने चरम पर होता है, तो सभी कुछ अस्त हो जाता है और सूर्य के आगे सभी कुछ प्रभावहीन हो जाता है। मध्याह्न के इस मुहूर्त को अभिजित मुहूर्त कहते हैं।

इस समय कलश स्थापना का श्रेष्ठ मुहूर्त
6 अप्रैल को यह अभिजित मुहूर्त दोपहर 11 बजकर 40 मिनट से 12 बजकर 25 मिनट तक रहेगा। अस्तु, इस बार नवरात्र की कलश स्थापना अभिजित मुहूर्त में करना श्रेयष्कर है। लिहाजा, सारी शंका छोड़कर अभिजित मुहूर्त में, यानी दोपहर 11:40 से 12:25 के बीच अपने घट या कलश की स्थापना करें।

घट स्थापना की पूरी विधि
घट स्थापना के लिये घर के ईशान कोण, यानी उत्तर-पूर्व दिशा का चुनाव करना चाहिए। इसके लिये सबसे पहले घर के उत्तर-पूर्वी हिस्से की अच्छे से साफ-सफाई करके, वहां पर जल से छिड़काव करें और जमीन पर साफ मिट्टी या बालू बिछाएँ। फिर उस साफ मिट्टी या बालू पर जौ की परत बिछाएं। इसके बाद पुनः उसके ऊपर साफ मिट्टी या बालू की साफ परत बिछानी चाहिए और उसका जलावशोषण करना चाहिए। यहां जलावशोषण का मतलब है कि उस मिट्टी या बालू के ऊपर जल छिड़कना चाहिए। फिर उसके ऊपर मिट्टी या धातु के कलश की स्थापना करनी चाहिए।

कलश को गले तक साफ, शुद्ध जल से भरना चाहिए और उस कलश में एक सिक्का डालना चाहिए। अगर संभव हो तो कलश के जल में पवित्र नदियों का जल जरूर मिलाना चाहिए। इसके बाद कलश के मुख पर अपना दाहिना हाथ रखकर
गंगे! च यमुने! चैव गोदावरी! सरस्वति!
नर्मदे! सिंधु! कावेरि! जलेSस्मिन् सन्निधिं कुरु।।
इस प्रकार ये मंत्र पढ़ना चाहिए। अगर आपको ये मंत्र याद ना हो, तो बिना मंत्र के ही गंगा, यमुना, कावेरी, गोदावरी, नर्मदा आदि पवित्र नदियों का ध्यान करते हुए उन नदियों के जल का आह्वाहन उस कलश में करना चाहिए और ऐसा भाव करना चाहिए कि सभी नदियों का जल उस कलश में आ जाये। साथ ही वरूण देवता का भी आह्वाहन करना चाहिए कि वो उस कलश में अपना स्थान ग्रहण करें। इसके बाद कलश के मुख पर कलावा बांधना चाहिए और एक ढक्कन या परई या दियाली या मिट्टी की कटोरी, जो भी आप समझते हों और जो भी आपके पास उपलब्ध हो, उससे कलश को ढक देना चाहिए।
अब ऊपर ढकी गयी कटोरी में जौ भरिये और अगर जौ न हो तो आप चावल भी भर सकते हैं। इसके बाद एक जटा वाला नारियल लेकर उसे लाल कपड़े से लपेटकर, कलावे से बांध देना चाहिए। फिर नारियल को जौ या चावल से भरी हुई कटोरी के ऊपर स्थापित करना चाहिए।
यहां दो बातें विशेषतौर पर ध्यान दें- कुछ लोग कलश के ऊपर रखी गयी कटोरी में ही घी का दीपक जला लेते हैं, लेकिन ऐसा करना उचित नहीं है। कलश का स्थान पूजा के उत्तर-पूर्व कोने में होता है, जबकि दीपक का स्थान दक्षिण-पूर्व कोने में होता है। अतः कलश के ऊपर दीपक नहीं जलाना चाहिए।
दूसरी बात ये है कि कुछ लोग कलश के ऊपर रखी कटोरी में चावल भरकर उसके ऊपर शंख स्थापित करते हैं, आप ऐसा कर सकते हैं। बशर्ते कि शंख दक्षिणावर्ती होना चाहिए। साथ ही शंख रखते समय उसका मुंह ऊपर की ओर रखना चाहिए और उसकी चोंच अपनी ओर करके रखनी चाहिए।
सबसे पहले उत्तर-पूर्व कोने की सफाई करें और
जल छिड़कते समय कहें– ऊँ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डाय विच्चे।
फिर उत्तर-पूर्व कोने में मिट्टी या बालू बिछाएं और 5 बार मंत्र पढ़ें– ऊँ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डाय विच्चे।
उसके ऊपर जौ बिछाएं– ऊँ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डाय विच्चे।
उसके ऊपर फिर मिट्टी या बालू बिछाएं– ऊँ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डाय विच्चे।
उसके ऊपर कलश रखें और मंत्र पढ़िये– ऊँ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डाय विच्चे।
फिर कलश में जल भरिये– ऊँ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डाय विच्चे।
उसमें सिक्का डालिये– ऊँ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डाय विच्चे।
वरूण देव का आह्वाहन कीजिये– ऊँ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डाय विच्चे।
कलश के मुख पर कलावा बांधिये– ऊँ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डाय विच्चे।
कलश के ऊपर कटोरी रखिये– ऊँ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डाय विच्चे।
उसमें चावल या जौ भरिये– ऊँ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डाय विच्चे।
फिर नारियल पर कपड़ा लपेटिये– ऊँ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डाय विच्चे।

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