परिस्थितियां ऐसी बदलेंगी, कभी ना गया किसी का ध्यान
सब कुछ हो जाएगा बंद, ना था किसी को अनुमान।
पलायन हो सकता इतना बड़ा,कभी ना किसी ने लिया संज्ञान,
पैदल ही चलने के लिए बाध्य होंगे बच्चे बूढ़े जवान साथ में होगा सामान।
रोजी रोटी के पड़ेगे लाले, पांव में हो जाएंगे छाले,
भूख से होगा बुरा हाल, मां बाप तो सही कैसे भूखे रहेंगे नौनिहाल।
जब घरों से निकले थे अपने अपने,
मन में संजोए हुए थे अच्छे- अच्छे सपने मिलेगा रोजगार, पलेगा परिवार,
बंद हो गया रोजगार सहना पड़ा तिरस्कार, घर वापसी को हो गए लाचार।
खत्म हो रहा था ठोर ठिकाना, मालिको का बनाना बहाना
होके मजबूर चल पड़े लक्ष्य की ओर, चाहे पैदल ही था जाना।
सबकी मनजीले थी दूर-दूर, थक कर हो जाते थे चकनाचूर
गिरते पडते चलने को थे मजबूर सब कुछ देख रहा था जमाना।
हिम्मत नहीं थी हारी, साथ में कानून का भय था भारी,
यातायात के सभी बंद थे साधन,
प्राइवेट या सरकारी, जगह-जगह रोकने लगे अधिकारी।
सरकारों को मिली जानकारी,
तुरंत सहायता की हो गई तैयारी चलाकर रेल बस, पहुंचाया अपने अपने प्रदेश,
बचाया प्रवासियों का सम्मान।
पलायन का देखा रूप साथ में महामारी का प्रकोप,
चकित रह गई सरकार कर रही नई नीति तैयार,
तुरंत करके मदद सरकारी, बचाई मजदूर की जान
बचा लिया मजदूर का स्वाभिमान।
– पुष्कर दत्त, मो. 94163-38524