हिसार

सब्जी विज्ञान विभाग द्वारा निमेटोड, कीट, मृदाजनित बीमारियों को कम करने के लिए विकसित की ग्राफ्टिंग तकनीक

हिसार,
हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय के सब्जी विज्ञान विभाग में 2018 में 175 लाख की राशि की एक राष्ट्रीय कृषि विकास योजना-रफ्तार परियोजना को मंजूरी दी गई है, जिससे न केवल हरियाणा बल्कि देश में भी निकट भविष्य में ग्राफ्टिंग तकनीक के अनुसंधान कार्य और व्यवसायीकरण को बढ़ावा मिलेगा। इस परियोजना का संचालन डॉ. एसके सहरावत के नेतृत्व में अनुसंधान निदेशालय द्वारा किया जा रहा है। इसके अंतर्गत किया जा रहा शोध कार्य ना केवल हरियाणा बल्कि देश के सभी किसान भाईयों के लिए उपयोगी होगा जो सब्जी उत्पादन से जीविका कमा रहे हैं।
कुलपति प्रो. केपी सिंह ने बताया कि हरियाणा में एक बार पहचाने जाने वाले प्रतिरोधी रूटस्टॉक्स न केवल कृषि-रसायनों पर निर्भरता को कम करेंगे बल्कि इस तकनीक के साथ हमारे किसानों की प्रमुख समस्याओं के समाधान की पेशकश करेंगे जिन्हें वर्तमान परिदृश्य में स्थायी सब्जी उत्पादन के लिए रसायनों के सीमित उपयोग के साथ पर्यावरण के अनुकूल माना जाता है। उन्होनें बताया कि हरियाणा और आस-पास के क्षेत्रों में रूटस्टॉक्स की पहचान के उद्देश्यों के साथ अनुसंधान कार्य शुरू किया गया है जो हमारे क्षेत्र की प्रचलित समस्याओं जैसे कि संरक्षित खेती में निमेटोड की समस्या, कुछ क्षेत्रों में लवणता या क्षारयता की समस्या, कुकुर्बिट्स और सॉलानसियस सब्जियों में फ्यूसैरियम या बैक्टीरियल विल्ट की समस्या इत्यादि। इसके साथ-साथ पौधे की शक्ति और उपज में वृद्धि के लिए भी प्रयास किये जा रहे हैं।
ग्राफ्टिंग एक अनूठी बागवानी तकनीक है जिसका उपयोग दुनियाभर में मिट्टी से पैदा होने वाली बिमारियों और कीटों को दूर करने के लिए या विभिन्न पर्यावरणीय तनाव परिस्थितियों में पौधे की शक्ति बढ़ाने के लिए किया जाता है। आज सब्जियों में ग्राफ्टिंग अधिक महत्वपूर्ण हो गई है क्योंकि फसल चक्र या मिट्टी के धूमन के विकल्प सीमित हैं। ग्राफ्टिंग का उपयोग पर्यावरणीय तनाव जैसे लवणता, सूखा, बाढ़ और तापमान को कम करने के लिए भी किया जाता है। तरबूज फसल के संदर्भ में जापान, कोरिया, दक्षिणी स्पेन, दक्षिणी इटली, तुर्की और ग्रीस में उत्पादित लगभग सभी तरबूजों को ग्राफ्ट किया जाता है और दुनियाभर में ग्राफ्टिंग टमाटर, बैंगन, मिर्च, ककड़ी और खरबूजे की संख्या बढ रही है। हालांकि, वनस्पति ग्राफ्टिंग वर्षों पुरानी तकनीक है, लेकिन 1900 के शुरुआती दिनों तक इसे प्रलेखित नहीं किया गया था जब यूकेचिताकेनका नामक वैज्ञानिक ने जापान में एक विस्तार शोधलेख 1927 में प्रकाशित किया, जो दर्शाता है कि वनस्पति ग्राफ्टिंग भविष्य की सब्जी उत्पादन के लिए एक क्रांतिकारी तकनीक हो सकती है और वैज्ञानिकों को इस तकनीक को और विकसित करने के लिए प्रोत्साहित कर सकती है जिससे यह प्रौद्योगिकी किसानों के बीच प्रचलित हो जाए।
टेटिशी ने बताया है कि जापान के ह्योगो में उकीची ताकेनाका नाम का एक छोटा तरबूज उगाने वाले किसान ने कद्दू (या स्क्वैश) पर तरबूज का ग्राफ्ट किया और सफलतापूर्वक आसानी से फूसेरियम विल्ट को पछाड़ दिया। 1950 के दशक तक, एक ही भूमि के गहन उपयोग के कारण मृदाजनित रोगों और सुरंगों के तहत सब्जियों के गहन उत्पादन के रूप में ग्राफ्टिंग का उपयोग तेज हो गया। इस युग के दौरान, बीज कंपनियों ने रोग प्रतिरोध के लिए रूटस्टॉक्स प्रजनन में जबरदस्त लाभ कमाया, और उन्होंने अपने अंतर्राष्ट्रीय विपणन प्रयासों के माध्यम से कई देशों के लिए ग्राफ्टिंग की शुरुआत की और इजऱाइल एक ऐसे देश के रूप में विकसित हुआ जो वाणिज्यिक सब्जी ग्राफ्टिंग के शुरुआती एडेप्टर में से एक महत्वपूर्ण देश बन गया। 1960 के दशक में जापान और कोरिया में टमाटर ग्राफ्टिंग का व्यावसायिक उपयोग शुरू किया गया था।
1950 के दशक से कई एशियाई देशों में वनस्पति ग्राफ्टिंग सफल रही है, और दुनिया भर में तेजी से लोकप्रिय हो रही है। नए रूटस्टॉक्स को कई बहुराष्ट्रीय प्रजनन कंपनियों ने अपनी व्यवसायिक गतिविधियों के माध्यम से विकसित और वितरित किया है। बायोटिक और अजैविक तनावों के प्रति सहिष्णुता / प्रतिरोध के साथ प्रत्येक प्रजाति के लिए उपयुक्त रूटस्टॉक्स की प्रजनन और पहचान इस तकनीक के सफल चल रहे अनुप्रयोग के लिए एक बुनियादी आवश्यकता है। मशीनीकरण और स्वचालन प्रौद्योगिकी के विकास और शुरूआत से बड़े पैमाने पर उत्पादन को बढ़ावा मिलेगा, जिससे लागत में कमी आएगी। कुशल श्रम प्रबंधन को उत्पादन में सफलता की कुंजी के रूप में मान्यता दी गई है, जो ग्राफ्टिंग को किसानों द्वारा बड़े पैमाने पर अपनाने योग्य और स्वीकार्य बनाएगा।
सब्जियों में ग्राफ्टिंग के अनेक फायदे हो सकते हैं जैसे कि रोगप्रतिरोध /सहनशीलता, नेमाटोड प्रतिरोध / सहनशीलता, उपज में वृद्धि, कम तापमान व उच्च तापमान के प्रति सहिष्णुता, उच्च नमक सहिष्णुता, बाढ़ सहिष्णुता, उन्नत पोषक तत्व का बढऩा, विकास को बढ़ावा देना, भारी धातु और जैविक प्रदूषक सहिष्णुता, गुणवत्ता में बदलाव, प्रदर्शनी और शिक्षा के लिए सजावटी मूल्य, विस्तारित फसल अवधि इत्यादि शामिल हैं। इस संदर्भ में सब्जी विज्ञान विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ. एके भाटिया एवं डॉ. विनोद बत्तरा पूर्व विभागाध्यक्ष ने बताया कि ग्राफ्टिंग प्रणाली में अनुसंधान का कार्य डॉ. इन्दु अरोड़ा, परियोजना अधिकारी द्वारा किया जा रहा है। इस तकनीक के प्रचलन के साथ ही किसानों की आय को भी बढाया जा सकेगा व सब्जी उत्पादकों को इससे विशेषत: काफी लाभ होगा और इस दिशा में सब्जी विज्ञान विभाग में शोध कार्य निरंतर जारी रहेगा।

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